गुप्त नवरात्र में होती है देवी की गुप्त उपासना

इंदौर स्थित मां बीजासन का मंदिर
अविनाश रावत
    गुप्त नवरात्र पर ज्यादातर पंडित गुप्त उपासन करते हैं। इसके लिए दोनों गुप्त नवरात्रियों में ज्यादातर पंडित असम के कामख्या मंदिर जाते हैं। कुछ लोग दतिया स्थित पीताम्बरा शक्ति पीठ में रहकर देवी उपासना करते हैं। दस महाविद्याओं की उपासना का पर्व 'गुप्त नवरात्र' के प्रति पिछले कुछ सालों में लोगों का
    सामान्यत: लोग वर्ष में पड़ने वाले केवल दो नवरात्रों के बारे में ही जानते हैं- "चैत्र' या "वासंतिक नवरात्र' व "आश्विन' या "शारदीय नवरात्र', जबकि इसके अतिरिक्त दो और नवरात्र भी होते हैं, जिनमें विशेष कामनाओं की सिद्धि की जाती है। पंडितों के अलावा बहुत कम लोगों को इसका ज्ञान होने के कारण व इसके छिपे होने के कारण ही इसको "गुप्त नवरात्र' कहते हैं। वर्ष में दो बार गुप्त नवरात्र आते हैं- माघ मास के शुक्ल पक्ष व आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में। यानि कुल मिला कर वर्ष में चार नवरात्र होते हैं। यह चारों ही नवरात्र ऋतु परिवर्तन के समय मनाये जाते हैं। इस विशेष अवसर पर अपनी विभिन्न मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए पूजा-पाठ आदि किये जाते हैं। गुप्त नवरात्र हिन्दू धर्म में उसी प्रकार मान्य हैं, जिस प्रकार "शारदीय' और "चैत्र नवरात्र'। आषाढ़ और माघ माह के नवरात्रों को "गुप्त नवरात्र' कह कर पुकारा जाता है। गुप्त नवरात्र मनाने और इनकी साधना का विधान "देवी भागवत' व अन्य धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। श्रृंगी ऋषि ने गुप्त नवरात्रों के महत्त्व को बतलाते हुए कहा है कि- "जिस प्रकार वासंतिक नवरात्र में भगवान विष्णु की पूजा और शारदीय नवरात्र में देवी शक्ति की नौ देवियों की पूजा की प्रधानता रहती है, उसी प्रकार गुप्त नवरात्र दस महाविद्याओं के होते हैं। यदि कोई इन महाविद्याओं के रूप में शक्ति की उपासना करें, तो जीवन धन-धान्य, राज्य सत्ता और ऐश्वर्य से भर जाता है।
    शास्त्रों के जानकारों के मुताबिक गुप्त नवरात्रों का बड़ा ही महत्त्व है। मनुष्य के समस्त रोग-दोष व कष्टों के निवारण के लिए गुप्त नवरात्र से बढ़कर कोई साधना काल नहीं हैं। श्री, वर्चस्व, आयु, आरोग्य और धन प्राप्ति के साथ ही शत्रु संहार के लिए गुप्त नवरात्र में अनेक प्रकार के अनुष्ठान व व्रत-उपवास के विधान शास्त्रों में मिलते हैं। इन अनुष्ठानों के प्रभाव से मानव को सहज ही सुख व अक्षय ऎश्वर्य की प्राप्ति होती है। "दुर्गावरिवस्या' नामक ग्रंथ में स्पष्ट लिखा है कि साल में दो बार आने वाले गुप्त नवरात्रों में भी माघ में पड़ने वाले गुप्त नवरात्र मानव को न केवल आध्यात्मिक बल ही प्रदान करते हैं, बल्कि इन दिनों में संयम-नियम व श्रद्धा के साथ माता दुर्गा की उपासना करने वाले व्यक्ति को अनेक सुख व साम्राज्य भी प्राप्त होते हैं। "शिवसंहिता" के अनुसार ये नवरात्र भगवान शंकर और आदिशक्ति माँ पार्वती की उपासना के लिए भी श्रेष्ठ हैं। गुप्त नवरात्रों को सफलतापूर्वक सम्पन्न करने से कई बाधाएँ समाप्त हो जाती हैं। कुमारी कन्याओं की विवाह में बाधा के लिए गुप्त नवरात्र बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। कुमारी कन्याओं को अच्छे वर की प्राप्ति के लिए इन नौ दिनों में माता कात्यायनी की पूजा-उपासना करनी चाहिए। "दुर्गास्तवनम्" जैसे प्रामाणिक प्राचीन ग्रंथों में लिखा है कि      ""कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि। नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरू ते नम:।।'' मंत्र का 108 बार जप करने से कुमारी कन्या का विवाह शीघ्र ही योग्य वर से संपन्न हो जाता है। इसी तरह  पुरूषों के विवाह में विलंब होने पर उन्हें भी लाल रंग के पुष्पों की माला देवी को चढ़ाकर ""देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।'' मंत्र का 108 बार जप पूरे नौ दिन तक करने चाहिए।
आकर्षण बढ़ा है। विष्णु के शयन काल की अवधि के बीच जब देव शक्तियां क्षीण होने लगती हैं तब पृथ्वी पर रूद्र, वरुण, यम आदि का प्रकोप बढ़ने लगता है। इन विपत्तियों से बचाव के लिए गुप्त नवरात्र में मां दुर्गा की उपासना की जाती है। सतयुग में चैत्र नवरात्र, त्रेता में आषाढ़ नवरात्र, द्वापर में माघ और कलयुग में आश्विन की साधना-उपासना का विशेष महत्व रहता है।  मार्कंडेय पुराण में इन चारों नवरात्रों में शक्ति के साथ-साथ इष्ट की आराधना का भी विशेष महत्व है। शिवपुराण के अनुसार पूर्वकाल में दैत्य दुर्ग ने ब्रह्मा को तप से प्रसन्न कर चारों वेद प्राप्त कर लिए। वह उपद्रव करने लगा। वेदों के नष्ट हो जाने से देव-ब्राह्मण पथ भ्रष्ट हो गए। जिससे पृथ्वी पर वर्षों तक अनावृष्टि रही । देवताओं ने मां पराम्बा की शरण में जाकर दुर्ग का वध करने का निवेदन किया। मां ने अपने शरीर से काली, तारा, छिन्नमस्ता, श्रीविद्या, भुवनेश्वरी, भैरवी, बगला, धूमावती, त्रिपुरसुंदरी और मातंगी नाम वाली दस महाविद्याओं को प्रकट कर दुर्ग का वध किया। दस महाविद्याओं की साधना के लिए तभी से 'गुप्त नवरात्र' मनाया जाने लगा।

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