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Showing posts from January, 2022

ओपिनियन पोल के 90% दावे गलत, न करें इनके हो हल्ला पर भरोसा

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ओपिनियन पोल उस ठग ज्योतिष की तरह है जिसे उचित दक्षिणा मिले तो किन्नर को भी पुत्र प्राप्ति का योग बता देगा। यह बात हम नहीं कह रहे बल्कि चुनाव-दर-चुनाव गलत साबित हो चुके ओपिनियन पोल के नतीजे ही पूरी कहानी बयां कर रहे हैं। ओपिनियन पोल्स के फर्जी साबित होने की कहानियां यूपी से लेकर बंगाल, पुडुचेरी, बिहार तक बिखरी पड़ी हैं। गौर से देखें तो पता चलेगा कि 90 फीसदी मामलों में उल्टे निकले। इसी तरह को पोल करने वाली कंपनियों ने  बंगाल में बीजेपी को  135  से 183 सीटें दी थीं। नतीजा आया तो सिर्फ 77 सीट मिली। बिहार में 2015 और 2020 में तमाम दावे गलत निकले। 2015 में लालू-नीतीश की पार्टी की सीटों पर बीजेपी की बढ़त बताई। नतीजा आया तो RJD-JDU को 178 और बीजेपी सिर्फ 58 सीटें ही मिलीं। 2020 में तो ब्लंडर हो गया। बताया कि आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन 161 सीट पर जीत रही है। जश्न शुरू हो गया, नतीजा आया तो 110 पर ही गठबंधन सरेंडर हो गया। चुनावी सीजन में रिपब्लिक भारत और ABP-C वोटर हर महीने ओपिनियन पोल कर रहे हैं। हर बार एक ही कहानी, BJP यूपी जीत रही है। फेसबुक, व्हाट्सएप और ट्विटर पर इसका इतना प्रचार हो रहा है, लगता ह

यहां संगीत सुनाती हैं शिलाएं

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यदि आप रहस्य और रोमांच से रू-ब-रू होना चाहते हैं, तो एक बार पोटला के जंगल पहुंच जाएं। वहां की अष्टकोणीय शिलाएं आपका मन मोह लेंगी। इनकी विशेषता यह है कि जब आप लोह तरंग की तरह इन्हें बजाएंगे, तो अलग-अलग प्रकार की आवाजें सुनाई देंगी। देशभर में सिर्फ उदयनगर के पास स्थित देवझिरी में ही यह शिलाएं पाई जाती हैं। पर्यटन निगम का अभी इस पर ध्यान नहीं गया है। अलबत्ता होलकर साइंस कॉलेज का भू-गर्भशास्त्र विभाग इस पर काम कर रहा है।  इंदौर से करीब 70 किमी दूर है उदयनगर फारेस्ट रेंज। यहां से कुछ दूरी पर देवझिरी गांव के पास पोटला का जंगल प्राकृतिक संपदाओं से भरा हुआ है। यहां का कावड़िया पहाड़ जियो टूरिज्म की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान हो सकता था लेकिन वन विभाग ने कभी ध्यान ही नहीं दिया। डीबी स्टार की टीम यहां पहुंची तो कई प्रकार के रोचक नजारे देखने को मिले। करीब ढ़ाई हजार मीटर लंबे और पांच किमी के दायरे में पहाड़ की सात चोटियां ऐसी प्रतीत हो रही थीं मानो वह सैलानियों का स्वागत करने को आतुर हों।  शिलाएं सुनाती हैं सरगम  अष्ट और अष्टकोणीय शिलाओं से भरी इन पहाड़ियों ने टीम को रोमांचित कर दिया। साथ गए ग्रामीणों

आठ भाजियों वाले मैनपानी के भाजीबड़े, स्वादिष्ट भी सेहतमंद भी

  अगर आप खाने के शौकीन हैं और आपने सागर के पास मैनपानी के भाजीबड़े नहीं खाए तो यकीन मानिए आपने बुंदेलखंड का असली स्वाद ही नहीं चखा। जिस तरह इंदौर का पोहा, अजमेर की कढी कचौरी, पटना का लिट्‌टी चोखा, अहमदाबाद के थेपले, आगरे का पेठा, इलाहाबाद की तहरी, उरई के गुलाब जामुन और जौनपुर की इमरती प्रसिद्ध है। ठीक उसी तरह मैनपानी के भाजीबड़े स्वाद में किसी भी स्तर पर कमतर नहीं है।    बेसन, अजवाइन, धनिया, लालमिर्च, हरीमिर्च, हींग, जीरा और हल्की सौंफ। इसके साथ मैथी, पालक, नोरपा, सरसों, बथुआ, कोचई और लालभाजी सहित कुल आठ भाजी इन भाजीबड़ों का स्वाद बढ़ाती हैं। यह स्वादिष्ट तो हैं ही साथ ही सेहतमंद भी हैं। मैनपानी के शेरसिंह राजपूत करीब 20 सालों से इन्हीं चीजों का मिश्रण तैयार कर रहे हैं। इसके लिए वे रोजाना सुबह 6 बजे से तैयारी करते हैं। तब कहीं जाकर दोपहर 3 बजे मिट्‌टी की भट्‌टी पर भाजीबड़े तलने का काम  शुरू हो पाता है। भाजीबड़े तलने का यह सिलसिला रात करीब 8 बजे तक इसी तरह चलता रहता है। इन पांच घंटों में शेरसिंह 25-30 किलो तक बेसन खपा देते हैं।    भाजीबड़े खाने के शौकीनों का आलम यह होता है कि वे 40-50 किमी से

यूपी यानी आजादी के पहले का यूनाइटेड प्रोविंस, अभी का उत्तर प्रदेश

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यूपी यानी आजादी से पहले का यूनाइटेड प्रोविंस और अभी का उत्तर प्रदेश। करीब 25 करोड़ आबादी वाले इस राज्य को आजादी के पहले भी यूपी कहा जाता था और अब भी यूपी ही कहा जाता है। तब इसका मतलब यूनाइटेड प्रोविंस था और अब उत्तर प्रदेश। आज 24 जनवरी को वर्तमान उत्तर प्रदेश का स्थापना दिवस है। तो आइए आपको बताता हूं यूनाइटेड प्रोविंस से उत्तर प्रदेश तक यूपी की कहानी… 1775, 1798 और 1801 में नवाबों, 1803 में सिंधिया और 1816 में गोरखों से छीने गए प्रदेशों को पहले बंगाल प्रेज़िडेन्सी के अन्तर्गत रखा गया। फिर 1833 में इन्हें अलग करके पश्चिमोत्तर प्रान्त गठित किया गया। शुरूआत में इसे आगरा प्रेज़िडेन्सी कहा जाता था। 1856 में कम्पनी ने अवध पर अधिकार कर लिया और आगरा व अवध को संयुक्त प्रान्त बना दिया गया। 1877 में पश्चिमोत्तर प्रान्त को भी यूनाइटेड प्रोविंस (यूपी) में मिला लिया गया। 1902 में इसका नाम बदलकर पश्चिमोत्तर संयुक्त प्रान्त (नार्थ वेस्ट यूनाइटेड प्रोविंस) कर दिया गया। 1902 में नार्थ वेस्ट प्रॉविन्स का नाम बदल कर यूनाइटेड प्रोविन्स ऑफ आगरा एण्ड अवध कर दिया गया। तभी से इसे राज्य को साधारण बोलचाल की भाषा