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Showing posts from July, 2015

पितृमुक्ति का पहला द्वार है प्रयागराज

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अविनाश रावत प्रयागे माघमासे तु त्र्यहं स्नानस्य यत्फलम्। नाश्वमेधसस्त्रेण तत्फलं लभते भुवि।। " पद्मपुराण ' के इस श्लोक का मतलब है कि इलाहाबाद में माघ मास के समय तीन दिन पर्यन्त संगम स्नान करने से प्राप्त फल पृथ्वी पर एक हज़ार अश्वमेध यज्ञ करने से भी नहीं प्राप्त होता। कुंभ में यहां स्नान करने से बड़ा कोई पुण्य नहीं है। इलाहाबाद। उत्तर भारत के उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग में स्थित एक नगर एवं इलाहाबाद जिले का प्रशासनिक मुख्यालय। इसका प्राचीन नाम प्रयाग है। इसे " तीर्थराज ' ( तीर्थों का राजा ) या प्रयागराज भी कहते हैं। हिन्दू मान्यता है कि यहां सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण कार्य पूर्ण होने के बाद प्रथम यज्ञ किया था। संगम वह स्थल है जहां भारत की पवित्र नदियों गंगा - यमुना व सरस्वती का संगम होता है। सरस्वती नदीं यहां दिखती नहीं। फिर भी मान्यता है कि वह अदृश्य रूप में है और गंगा व यमुना की धाराओं के नीचे बहती है। इसी वजह से संगम स्थल को त्रिवेणी संगम कहा जाता है। जैसे ग्रहों में सूर्य तथा तारों में चंद्रमा है वैसे ही तीर्थों में संगम को सभी तीर्थों का अध

पाकिस्तान ही क्यों नहीं चले जाते सलमान

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     सलमान खान सहित उन तमाम लोगों से गुजारिश है, जो याकूब को बचाना चाहते हैं और हर बार कहीं न कहीं पाकिस्तानयों और पाकिस्तान के पक्ष में खड़े नजर आ जाते हैं, वे पाकिस्तान में ही क्यों नहीं रहना शुरू कर देते। भारत में रहते हुए कभी फिल्मों में तो कभी असल जिंदगी में पाकिस्तान और पाकिस्तानियों का पक्ष प्रत्यक्ष या परोक्ष रुप से क्यों ले रहे हो। 21 जुलाई को प्रकाशित एक इंटरव्यू में सलमान ने कहा है कि उन्हें वे फिल्में पसद नहीं जिनमें पाकिस्तान को बुरा कहा जाता है। 15 अगस्त 2012 को रिलीज हुई कबीर खान निर्देशित फिल्म एक था टाइगर में जनाब भारतीय खूफिया एजेंसी के एजेंस होते हुए पाकिस्तानी खूफिया एजेंसी की एजेंट से प्यार कर बैठे जिसके लिए उन्होंने देश की सेवा छोड़ दी। अब हाल में कबीर खान निर्देशित दूसरी फिल्म में पाकिस्तानी लड़की को पाकिस्तान पहुंचाने के लिए जनाब भारतीय बार्डर सुरंग के जरिये सेना से छुपकर पार करते हैं लेकिन पाकिस्तान में घुसने के लिए बार बार पिटकर भी बगैर सेना की मंजूरी के  बार्डर पार नहीं जाते।     अब जनाव सलमान खान ने 1993 मुंबई धमाकों के मास्टरमाइंड आतंकी याकूब मेमन की फांसी

1716 में इदौर में था कर मुक्त व्यापार केन्द्र

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नंदलाल मंडलोई के प्रस्ताव पर मालवा के मुगल सूबेदार की अनुमति के बाद इंदौर में कर मुक्त व्यापार केन्द्र स्थापित किया गया। इसे आज भी हम नंदलालपुरा के नाम से जानते हैं। इंदौर की बसाहट में रावला (मंडलोई) परिवार की भूमिका अहम है।  राव राजा नंदलाल मंडलोई  रावला (मंडलोई) इंदौर में मंडलोई परिवार है जो मूलत: श्रीगौड़ ब्राह्मण हैं। मालवा में आ बसने से ये श्रीगौड़ मालवीय कहलाए। ये मुगलों के पदाधिकारी हुआ करते थे। 15वीं-16वीं सदी में सूवा मालवा, उज्जैन सरकार, पहगना देपालपुर और कस्बा इंदौर कहलाता था। इंदौर एक छोटा कस्बा था जिसका मुख्यालय कंपेल हुआ करता था। इस परिवार के मूल पुरुष बलराम चौधरी थे। रावला परिवार के पास अक्टूबर 1664 की सनद है जिसमें चूड़ामल चौधरी की नियुक्ति का विवरण है जो मालवा के बजीर खां मोहम्मद ताहिर खुरासानी ने जारी की थी। 2 इस सनद में सुंदरदास के पुत्र उदेराम के पौत्र चिंतामण की नि:संतान मृत्यु के कारण बलराम जी के पुत्र चूडामण को नियुक्त किये जाने का उल्लेख है। चूडामण के पुत्र नंदलाल हुए इसे 1700 ईस्वी में इंदौर का कार्यभार मिला तब भी मुख्यालय कंपेल था। नंदलाल मंडलोई कुशाग्र

6वीं शताब्दी का इंद्रपुरी, 18वीं में बना इंदूर व इंडोर और अब कहलाता है इंदौर

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18वीं सदी में लिया गया इंद्रेश्वर महादेव मंदिर का फोटो अविनाश रावत     पुरातत्व विभाग में उपलब्ध जानकारियों के मुताबिक इंदौर पर आधिपत्य के लिए बंगाल के पाल, मध्य क्षेत्र के प्रतिहार और दक्षिण के राजपूतों के बीच आठवी शताब्दी में त्रिकोणीय संघर्ष हुआ। इसमें कभी पालों का, कभी प्रतिहारों का और कभी राजपूत शासन रहा। 1- आठवीं शताब्दी में राजकोट के राजपूत राजा इ्ंद्र तृतीय त्रिकोणीय संघर्ष में जीते तो इस विजय को यादगार बनाने के लिए उन्होंने यहां पर एक शिवालय की स्थापना की और नाम रखा इंद्रेश्वर महादेव। इसी मंदिर के कारण शहर का नाम इंद्रपुरी हो गया।  2- अठारहवीं शताब्दी में मराठा शासनकाल में इंद्रपुरी का नाम बदलकर इंदूर (इसके पीछे क्या लॉजिक था और सन) मराठी में इंद्रपुरी को मराठी अपभ्रंश में इंदूूर उच्चारण हुआ और बाद में यही नाम चलन में आ गया। 3 - अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में बिट्रिशों ने इंदूर का नाम अंग्रेजी में indor किया और बाद में बदलकर indore कर दिया। शासकीय गजिटियर, इंदौर साहित्य गजिटियर और डॉ अजीत रायजादा की किताब में 4-    इनसाइक्लोपीडिया बिर्टानिका में 1715 में इंदौर को मर

ये हैं देश की मिसाइल गर्ल

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रेखा कदम, एक ऐसा नाम जो प्रदेश के औद्योगिक जगत में मिसाइल गर्ल व लौह महिला के नाम से जाना जाने लगा है। अपनी लगन व मेहनत के बल पर मात्र 50 हजार रुपये के प्रारंभिक निवेश से प्रारंभ अपनी कंपनी एसके स्प्रिंग मैन्युफैक्चर्स कंपनी को आज 60 लाख रुपये से अधिक के टर्नओवर पर पहुंचा दिया है। 27 नवंबर 1971 को रिटायर्ड डीआईजी स्व. सीएस कदम के घर जन्मी रेखा ने इंदौर के जीएसआईटीए से सन 2000 में मैकेनिकल इंजिनियरिंग में बीई की पढाई कर खुद का बिजनेस शुरू किया। महिलाओं के लिए कोई सन 2000 में उन्होंने पूरी मार्केट रिसर्च करने के बाद सांवेर रोड औद्योगिक क्षेत्र में 10 हजार वर्गफीट क्षेत्रफल में एसके स्प्रिंग मैन्युफैक्चर्स कंपनी का आधु़निक प्लांट स्थापित किया। प्रदेश में तो यह इकलौता प्लांट है ही लेकिन देश में भी यहां अपनी तरह का अलग प्रॉडक्शन होता है। देश में चल रहे गिने चुने प्लांट हॉट टेक्नोलॉजी से स्प्रिंग बनाते हैं लेकिन यहां पर कोल्ड तकनीक से यह काम होता है। इस प्लांट की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां कार्य करने वाले सभी कर्मचारी महिलांए ही है। भारतीय सेना की पृथ्वी मिसाइल के निर्माण में कई तरह क

गुप्त नवरात्र में होती है देवी की गुप्त उपासना

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इंदौर स्थित मां बीजासन का मंदिर अविनाश रावत     गुप्त नवरात्र पर ज्यादातर पंडित गुप्त उपासन करते हैं। इसके लिए दोनों गुप्त नवरात्रियों में ज्यादातर पंडित असम के कामख्या मंदिर जाते हैं। कुछ लोग दतिया स्थित पीताम्बरा शक्ति पीठ में रहकर देवी उपासना करते हैं। दस महाविद्याओं की उपासना का पर्व 'गुप्त नवरात्र' के प्रति पिछले कुछ सालों में लोगों का     सामान्यत: लोग वर्ष में पड़ने वाले केवल दो नवरात्रों के बारे में ही जानते हैं- "चैत्र' या "वासंतिक नवरात्र' व "आश्विन' या "शारदीय नवरात्र', जबकि इसके अतिरिक्त दो और नवरात्र भी होते हैं, जिनमें विशेष कामनाओं की सिद्धि की जाती है। पंडितों के अलावा बहुत कम लोगों को इसका ज्ञान होने के कारण व इसके छिपे होने के कारण ही इसको "गुप्त नवरात्र' कहते हैं। वर्ष में दो बार गुप्त नवरात्र आते हैं- माघ मास के शुक्ल पक्ष व आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में। यानि कुल मिला कर वर्ष में चार नवरात्र होते हैं। यह चारों ही नवरात्र ऋतु परिवर्तन के समय मनाये जाते हैं। इस विशेष अवसर पर अपनी विभिन्न मनोकामनाओं की पूर्ति के

मानसिक और शारीरिक शांति प्रदान करता है शंख

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अविनाश रावत शंख बजाने में बचपने से ही मेरी विशेष रुचि रही है। ब्राह्म्ण कुल में जन्म लिया, दादाजी प्रसिद्ध ज्योतिष थे। पापा, चाचा और परिवार के ज्यादातर लोग पूजा पाठ करते हैं। जाहिर सी बात है पूजा के दौरान अक्सर ज्यादातर शंख बजाने का मौका मुझे ही मिलता रहा। वजह मेरी सांस बहुत लंबी और तेज है जिससे शंख की ध्वनि भी तेज और लंबी निकलती है। ढो़ल ग्यारस पर जब भी नरसिंह भगवान विमान में सवार होकर तालाब नगर भ्रमण और तालाब स्नान के लिए निकलते तो शंख बजाने का आनंद ही कुछ और था। कई सालों से इस विमान यात्रा  में नहीं पहुंच पाया फिर भी अपने पास एक शंख लेकर रखा है। रोजाना चार पांच बार शंख जरुर बजा लेता हूं। शंख मानसिक और शारीरिक दोनों तरह की शांति प्रदान करता है। शंख बजाने के फायदे और शंख की उत्तपत्ति से जु़ड़े कुछ तथ्य आपको बता रहा हूं। शंख की उत्पत्ति संबंधी पुराणों में एक कथा वर्णित है। सुदामा नामक एक कृष्ण भक्त पार्षद राधा के शाप से शंखचूड़ दानवराज होकर दक्ष के वंश में जन्मा। विष्णु ने इस दानव का वध किया। शंखचूड़ के वध के पश्चात्‌ सागर में बिखरी उसकी अस्थियों से शंख का जन्म हुआ और उसकी आत्मा र

महाश्मशान घाट है मणिकर्णिका

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बनारस से लौटकर- अविनाश रावत मणिकर्णिका घाट। वाराणसी में गंगानदी के तट पर स्थित एक प्रसिद्ध घाट। बनारस की कई चीज़ें पूरे संसार में प्रसिद्ध है। काशी विश्वनाथ मंदिर , बनारसी साड़ी , बनारसी पान , बनारस की गलियां , बनारस के सांड , अस्सी घाट। इन्हीं में से एक है मणिकर्णिका घाट। इस घाट से जुड़ी भी दो कथाएं हैं। एक के अनुसार भगवान विष्णु ने शिव की तपस्या करते हुए अपने सुदर्शन चक्र से यहां एक कुण्ड खोदा था। उसमें तपस्या के समय आया हुआ उनका स्वेद ( पसीना ) भर गया। जब शिव वहां प्रसन्न हो कर आये तब विष्णु के कान की मणिकर्णिका उस कुंड में गिर गई थी। दूसरी कथा के अनुसार भगवाण शिव को अपने भक्तों से छुट्टी ही नही मिल पाती थी। देवी पार्वती इससे परेशान हुईं और शिवजी को रोके रखने हेतु अपने कान की मणिकर्णिका वहीं छुपा दी और शिवजी से उसे ढूंढने को कहा। शिवजी उसे ढूंढ नही पाये और आज तक जिसकी भी अन्त्येष्टि उस घाट पर की जाती है , वे उससे पूछते हैं कि क्या उसने देखी है। प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार मणिकर्णिका घाट का स्वामी वही चाण्डाल था , जिसने सत्यवादी राजा हरिशचंद्र को खरीदा था। उसने राजा को अ