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राक्षस कुल की वृंदा बनी घर घर में पुजने वाली तुलसी

तुलसी(पौधा) पूर्व जन्म मे एक लड़की थी जिसका नाम वृंदा था! राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था। बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थी। वह बड़े प्रेम से भगवान की सेवा, पूजा किया करती थी। वह जब बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया। जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था। वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी सदा अपने पति की सेवा किया करती थी। एक बार देवताओ और दानवों में युद्ध हुआ। जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा -स्वामी आप युद्ध पर जा रहे है आप जब तक युद्ध में रहेगे में पूजा में बैठ कर आपकी जीत के लिये अनुष्ठान करुगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते, मैं अपना संकल्प नही छोडूगी। जलंधर युद्ध में चले गए। वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गई। उनके व्रत के प्रभाव से देवता जलंधर से जीत नहीं सके। वे हारने लगे तो विष्णु जी के पास गए। सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि – वृंदा मेरी परम भक्त है में उसके साथ छल नहीं कर सकता । फिर देवता बोले - भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते है। भगवान ने जलंधर का रूप रखा और वृंदा के महल में पँहुच गए। जैसे

दशकों से उपेक्षित ऐतिहासिक तालाब के दिन फिरे, बगैर खर्च के हो रहा गहरीकरण

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खिमलासा, सागर जिले का ऐतिहासिक स्थान। गढ़मंडला की रानी दुर्गावती के श्वसुर संग्राम सिंह के 52 गढ़ों में से एक। इन्हीं गढ़ों के कारण दुर्गावती का राज्य गढ़मंडला कहलाता था। संग्राम सिंह की मृत्यु 1541 ई. में हुई थी। इन्हीं संग्राम सिंह ने ग्राम में 28 एकड में फैले विशाल तालाब का निर्माण भी कराया। किले के भीतर दो बावड़ियों और किले के बाहर की समस्त बावड़ियों और कुंओं को रिचार्ज करने का पुराना तरीका भी था। 14वीं और 16वीं सदी में यह क्षेत्र मुगलों के अधीन रहा। बाद में खिमलासा, धामोनी और गढ़ाकोटा में मुगल सेना को परास्त कर महाराज छत्रसाल ने अपना राज्य स्थापित किया।1818 के पश्चात यह क्षेत्र ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन था। 1861 में प्रशासनिक व्यवस्था के लिए इस क्षेत्र को नागपुर से मिला लिया गया और यह व्यवस्थ। 1956 तक नए मध्यप्रदेश राज्य के पुनर्गठन तक बनी रही। इन समस्त कार्यकालों में इस तालाब की उपेक्षा होती रही। 1963 में की हिट फिल्म तीसरी कसम फिल्म में इसी तालाब को कुंवारी नदी दिखाया गया है। सजन रे झूंठ मत बोल.... गीत के बोल मशहूर शोमैन राजकपूर और अदाकारा वहीदा रहमान की अ

रातभर में तैयार हुआ था संविधान का कवर, इंग्लैंड से आया था पेपर

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भारत सरकार ने 26 जनवरी 1950 को जिस चिह्न को राष्ट्रीय चिह्न के तौर पर अपनाया वह इंदौर के कलाकार दीनानाथ भार्गव ने बनाया है। शांति निकेतन के तत्कालीन प्राचार्य नंदलाल बोस ने यह जिम्मेदारी पांच-छह छात्रों को सौंपी थी, जिनमें इंदौर के भार्गव भी थे। ब्रश के निशान के कारण रद्द पहली ड्राइंग दीनानाथ अपने साथ ले आए, जिसे उन्होंने फ्रेम कर रखा है। कॅरियर की 200 से ज्यादा पेंटिंग्स में यही ऐसा मास्टरपीस है, जिसने उनका नाम इतिहास में दर्ज करा दिया है। प्राचार्य बोस ने संविधान के कवर पेज पर अशोक स्तंभ की डिजाइन बनाने का काम दीनानाथ को सौंपा था। दीनानाथ रोज सुबह कलकत्ता के चिड़ियाघर में जाकर शेरों के हावभाव का अध्ययन करते और दिनभर वहीं बैठकर स्केच बनाते। यह सिलसिला महीनेभर चला। तब कहीं जाकर कवर पेज की फाइनल ड्राइंग बनी। 2007 में ललित कला अकादमी के हाॅल नंबर 8 में दीनानाथ भार्गव की एक्जीबिशन लगी थी। तभी उन्होंने अपने बारे में बताते हुए संविधान देखने का आवेदन दिया था। इसके बाद उन्हें अपना काम दूसरी बार देखने को मिला। दिल्ली से आए सोने के वर्क से कलर बनाकर ड्राइंग में भरने में लग गया सप्ताहभर

अद्भुत है इंदौर के देवी मंदिरी का इतिहास

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या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।। सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरन्ये त्रयम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते ।। इंदौर के लगभग सभी देवी मंदिरों के दर्शनों का लाभ प्राप्त हुआ। ज्यादातर मंदिरों का इतिहास खंगालकर अखबार में आर्टीकल भी लिखे। कुछ प्रमुख मंदिरों की जानकारी ब्लॉग के जरिए आपसे शेयर कर रहा हूं … .अविनाश रावत महिषासुर मुद्रा वाली हरसिद्धी माता सन् 1766 में शुक्ला परिवार के पूर्वज को स्वप्न आया कि खान नदी से सटी हुई बावड़ी में महिषासुर मुद्रा में देवी की प्रतिमा दबी हुई है। उन्होंने यह स्वप्न होलकर परिवार के दरबार में सुनाया तो अहिल्या बाई होल्कर के पुत्र ने खुदाई करवाकर देवी की मूर्ति बाहर निकलवाकर स्थापना करवायी। इसके लिए बावड़ी के पास ही वास्तु के अनुसार मंदिर का निर्माण इस तरह करवाया कि सूर्य की पहली किरण मूर्ति पर ही पड़ती है। जिस बावड़ी से माता की मूर्ति निकाली गई थी उस पर अब दीप स्तंभ का निर्माण कर दिया गया है। हर साल दशहरे के दिन हरसिद्धी माता शेर की सवारी करती हैं। इसके अलावा डोल ग्यारस के समय शहर के सभी डोल