रातभर में तैयार हुआ था संविधान का कवर, इंग्लैंड से आया था पेपर

भारत सरकार ने 26 जनवरी 1950 को जिस चिह्न को राष्ट्रीय चिह्न के तौर पर अपनाया वह इंदौर के कलाकार दीनानाथ भार्गव ने बनाया है। शांति निकेतन के तत्कालीन प्राचार्य नंदलाल बोस ने यह जिम्मेदारी पांच-छह छात्रों को सौंपी थी, जिनमें इंदौर के भार्गव भी थे।
ब्रश के निशान के कारण रद्द पहली ड्राइंग दीनानाथ अपने साथ ले आए, जिसे उन्होंने फ्रेम कर रखा है। कॅरियर की 200 से ज्यादा पेंटिंग्स में यही ऐसा मास्टरपीस है, जिसने उनका नाम इतिहास में दर्ज करा दिया है।
प्राचार्य बोस ने संविधान के कवर पेज पर अशोक स्तंभ की डिजाइन बनाने का काम दीनानाथ को सौंपा था। दीनानाथ रोज सुबह कलकत्ता के चिड़ियाघर में जाकर शेरों के हावभाव का अध्ययन करते और दिनभर वहीं बैठकर स्केच बनाते। यह सिलसिला महीनेभर चला। तब कहीं जाकर कवर पेज की फाइनल ड्राइंग बनी।
2007 में ललित कला अकादमी के हाॅल नंबर 8 में दीनानाथ भार्गव की एक्जीबिशन लगी थी। तभी उन्होंने अपने बारे में बताते हुए संविधान देखने का आवेदन दिया था। इसके बाद उन्हें अपना काम दूसरी बार देखने को मिला।
दिल्ली से आए सोने के वर्क से कलर बनाकर ड्राइंग में भरने में लग गया सप्ताहभर का समय
कवर पेज की ड्राइंग के लिए सरकार ने इंग्लैंड से पार्चमैंट पेपर मंगवाकर शांति निकेतन पहुंचाया था। यह पेपर चमड़े का होता है और कभी नहीं सड़ता है। दीनानाथ ने पार्चमैंट पेपर पर एक ही रात में अशोक स्तंभ की ड्राइंग बना ली, पर दिल्ली से आए सोने के वर्क से कलर बनाकर ड्राइंग में भरने में उन्हें सप्ताहभर लग गया। कवर पेज पर ब्लैक इंक से आउट लाइनिंग की गई, पर फाइनल ड्रांइग के ऊपरी हिस्से में ब्रश गिरने का निशान देख उन्होंने इसे रिजेक्ट कर दिया। फिर एक ही रात में दूसरी ड्राइंग बनाई और कलर भी कर दिया। यही ड्राइंग संविधान में जुड़ी और दिल्ली चली गई।
फाइनल डिजाइन को राष्ट्रीय चिह्न की तौर पर अपनाया गया है। इसमें तीन सिंह दिखाई देते हैं। पट्टी के मध्य में उभरी नक्काशी में चक्र है, जिसके दाईं ओर सांड और बाईं ओर घोड़ा है। दाएं तथा बाएं छोरों पर अन्य चक्रों के किनारे हैं। नीचे मुण्डकोपनिषद का सूत्र 'सत्यमेव जयते' देवनागरी लिपि में अंकित है।
कवर पेज की ड्राइंग पर अपना नाम लिखने के बारे में जब दीनानाथ ने प्राचार्य बोस से पूछा तो उन्होंने मना कर दिया। इस ऐतिहासिक काम के लिए सभी छात्रों को 15-15 हजार रुपए पारिश्रमिक दिया गया था।
संविधान के दूसरे पेज पर देश के बड़े नेताओं के हस्ताक्षर हैं। अंदर के पेज सजाने का काम जिन छात्रों को सौंपा गया था, उनमें गयाप्रसाद दीक्षित भी थे। वे कानपुर की ईरा वकील से एकतरफा प्रेम करते थे और आए दिन उन्हें तंग करते थे।
एक दिन उन्होंने यह दूसरा पेज उठाया और मैदान में जाकर जोर-जोर से चिल्लाने लगे, ईरा और गयाप्रसाद के प्रेम विवाह पर देश के बड़े नेताओं ने हस्ताक्षर कर मुहर लगा दी है। इस वाकये से जहां ईरा घबरा गईं, वहीं प्राचार्य बोस भी परेशान हो गए। उन्होंने अन्य छात्रों को गयाप्रसाद से वह पेज वापस लाने को कहा। इस पर छात्रों ने लकड़ी की पिस्तौल बनाकर गयाप्रसाद को डराया, तब उन्होंने वह पेज वापस किया। इसके बाद सभी छात्रों को संविधान के हर पन्ने से दूर रहने की हिदायत दी गई।

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