कल्पनाओं को मूर्त रूप देता है कल्पवृक्ष

खिमलासा में पांच हजार साल से आस्था का केन्द्र हैं यह दो कल्पवृक्ष
कल्पवृक्ष.. देवलोक का एक वृक्ष ।  इसे कल्पद्रुप, कल्पतरु, सुरतरु देवतरु तथा कल्पलता इत्यादि नामों से भी जाना जाता है।  पद्मपुराण के अनुसार परिजात ही कल्पवृक्ष है। पुराणों के अनुसार समुद्रमंथन से प्राप्त 14 रत्नों में एक कल्पवृक्ष भी था। यह इंद्र को दे दिया गया था और इंद्र ने इसकी स्थापना सुरकानन में कर दी थी। कल्पवृक्ष श्रीकृष्ण और सत्यभामा के प्रेम का प्रतीक है। कहते हैं कि सत्यभामा ने जब भगवान श्रीकृष्ण से इस कल्प वृक्ष को अपने पास लाने की इच्छा जताई तो कृष्ण ने देवराज इंद्र से यह कल्पवृक्ष मांगा तो इंद्र ने इसे देने के इंकार कर दिया तो कृष्ण इसे उखाड़कर लाये और खिमलासा में स्थापित कर दिया। कृष्ण और सत्यभामा से संबंधित कई शास्त्रों में कल्पवृक्ष के इस किस्से का जिक्र है लेकिन खिमलासा का उल्लेख कहीं नही है। कल्पवृक्ष के यहां स्थापित होने के पीछे एक अन्य तथ्य यह भी है कि इन दो कल्पवृक्षों से करीब 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गढ़ोली जवाहर गांव में पांड़वों के अज्ञातवास के दौरान बनाई गई एक मड़ भी है। यही नहीं करीब 30 किलोमीटर दूरी वह स्थान भी है जहां कृष्ण रणछोड़कर आए और यह स्थान आज भी रणछोड़ के नाम से जाना जाता है।  इसकी प्रमाणिकता देशभर में सबसे उम्रदराज कल्पवृक्ष का खिमलासा में होना और एक साथ दो कल्पवृक्ष होने से सिद्ध होती है।  खिमलासा मे लगे दो वृक्षों में एक नर है व दूसरा मादा वृक्ष है। नर कल्पवृक्ष की पहचान उसकी खुरदरी त्वचा और मादा कल्पवृक्ष की पहचान उसकी चिकनी त्वचा ही है। 
वनस्पतिशास्त्रियों द्वारा किये एक सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक देशभर में 30 कल्पवृक्ष हैं, सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में है। 11 सिर्फ लखनऊ में हैं। एक पेड़ लखनऊ विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग में मौजूद है। दूसरा एनबीआरआई में है। पाँच पेड़ चिड़ियाघर में हैं। बाराबंकी के देवाँ में भी कल्पवृक्ष है। गोरखपुर व बस्ती में भी एक-एक पेड़ है। ग्वालियर के पास कोलारस में भी एक कल्पवृक्ष है जिसकी आयु 2,000 वर्ष से अधिक की बताई जाती है। ऐसा ही एक वृक्ष राजस्थान में अजमेर के पास मांगलियावास में है । पुट्टपर्थी के सत्य साईं बाबा के आश्रम में मौजूद है। हमीरपुर में यमुना किनारे  भी करीब एक हजार साल पुराना दुर्लभ कल्पवृक्ष है। बनारस में भी एक पेड़ है। रांची, अल्मोड़ा, काशी, नर्मदा किनारे, कर्नाटक आदि कुछ महत्वपूर्ण स्थानों पर ही यह वृक्ष पाया जाता है। देशभर में जितने भी कल्पवृक्ष है उनकी आयु एक से दो हजार वर्ष के भीतर ही आंकी गयी है लेकिन सिर्फ खिमलासा में लगे दो कल्पवृक्ष ही ऐसे हैं जिनकी आयु पांच हजार वर्ष से भी अधिक आंकी गई है। हालांकि इसकी आयु संबंधी कोई प्रमाणिकता सार्वजनिक नहीं हुई है लेकिन यहां से कल्पवृक्ष की टहनियां लेकर टिश्यू कल्चर से हजारों साल पहले भी कई शहरों में कल्पवृक्ष स्थापित किये गये है। देशभर में जो कल्पृक्ष मौजूद है निश्चित तौर पर उनकी उत्पत्ति के पीछे कही न कहीं खिमलासा का संबंध अवश्य रहा है।  'तूबा' नाम से ऐसे ही एक पेड़ का वर्णन इस्लामी धार्मिक साहित्य में भी मिलता है जो सदा अदन (मुसलमानों के स्वर्ग का उपवन) में फूलता फलता रहता है। जैन समुदाय में कल्पोद्रुम समोसरण विधान की शुरूआत भी कल्पवृक्ष से जुडी है। जैन तीर्थंकरों ने कल्पवृक्ष के नीचे तपस्या की इसी वजह से यह विधान किया जाता है। हिंदूओं में राजसूर्य यज्ञ जैसा ही जैनियों का यह कल्पोद्रुम विधान है। 
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो ओलिएसी कुल के इस वृक्ष का वैज्ञानिक नाम ओलिया कस्पीडाटा है। यह यूरोप के फ्रांस व इटली में बहुतायत मात्रा में पाया जाता है। यह दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में भी पाया जाता है। भारत में इसका वानस्पतिक नाम बंबोकेसी है। इसको फ्रांसीसी वैज्ञानिक माइकल अडनसन ने 1775 में अफ्रीका में सेनेगल में सर्वप्रथम देखा था, इसी आधार पर इसका नाम अडनसोनिया टेटा रखा गया। इसे बाओबाब भी कहते हैं। भारत में 1799 के आसपास मध्यप्रांत में इस वृक्ष के देखे जाने संबंधी उल्लेख है। कहते हैं इस वृक्ष का नाश कल्पांत तक नहीं होता है इसलिए इसे कल्पवृक्ष कहा जाता है। हिन्दू धर्म में विश्वास है कि इस वृक्ष से जिस वस्तु की याचना की जाए वह अवश्य ही प्राप्त हो जाती है। 
वृक्षों और जड़ी-बूटियों के जानकारों के मुताबिक यह एक बेहद मोटे तने वाला फलदायी वृक्ष है जिसकी टहनी लंबी होती है और पत्ते भी लंबे होते हैं। दरअसल, यह वृक्ष पीपल के वृक्ष की तरह फैलता है और इसके पत्ते कुछ-कुछ आम के पत्तों की तरह होते हैं। इसका फल नारियल की तरह होता है, जो वृक्ष की पतली टहनी के सहारे नीचे लटकता रहता है। इसका तना देखने में बरगद के वृक्ष जैसा दिखाई देता है। इसका फूल कमल के फूल में रखी किसी छोटी- सी गेंद में निकले असंख्य रुओं की तरह होता है। पीपल की तरह ही कम पानी में यह वृक्ष फलता-फूलता हैं। सदाबहार रहने वाले इस कल्पवृक्ष की पत्तियां बिरले ही गिरती हैं, हालांकि इसे पतझड़ी वृक्ष भी कहा गया है। यह वृक्ष लगभग 70 फुट ऊंचा होता है और इसके तने का व्यास 35 फुट तक हो सकता है। 150 फुट तक इसके तने का घेरा नापा गया है। इस वृक्ष की औसत जीवन अवधि 2500-7000 साल है। कार्बन डेटिंग के जरिए सबसे पुराने फर्स्ट टाइमर की उम्र 6,000 साल आंकी गई है। 
औषध गुणों के कारण कल्पवृक्ष की पूजा की जाती है।  यह एक परोपकारी मेडिस्नल-प्लांट है अर्थात दवा देने वाला वृक्ष है। इसमें संतरे से 6 गुना ज्यादा विटामिन 'सी' होता है। गाय के दूध से दोगुना कैल्शियम होता है और इसके अलावा सभी तरह के विटामिन पाए जाते हैं। इसकी पत्ती को धो-धाकर सूखी या पानी में उबालकर खाया जा सकता है। पेड़ की छाल, फल और फूल का उपयोग औषधि तैयार करने के लिए किया जाता है। दैनिक आहार में प्रतिदिन कल्पवृक्ष के पत्ते मिलाएं 20 प्रतिशत और सब्जी (पालक या मैथी) रखें 80 प्रतिशत। आप इसका इस्तेमाल धनिए या सलाद की तरह भी कर सकते हैं। इसके 5 से 10 पत्तों को मैश करके परांठे में भरा जा सकता है। कल्पवृक्ष का फल आम, नारियल और बेल का जोड़ है अर्थात यह कच्चा रहने पर आम और बिल्व तथा पकने पर नारियल जैसा दिखाई देता है लेकिन यह पूर्णत: जब सूख जाता है तो सूखे खजूर जैसा नजर आता है।
पुराणों में कल्पवृक्ष को लेकर एक कथा भी कही गई है। एक थका-हारा व्यक्ति जंगल में एक वृक्ष के नीचे सुस्ताने बैठा। उसे जोर से प्यास लगी थी, सोचा कि क्या ही अच्छा हो यदि पीने के लिए ठंडा-ठंडा पानी मिल जाए। उसका ये सोचना था कि वहां फौरन एक लोटा ठंडा पानी पहुंच गया। उसने अपनी प्यास बुझाई और आराम करने लगा अब उसे भूख भी लग आई थी। उसने फिर सोचा कि क्या ही अच्छा हो यदि खाने के लिए स्वादिष्ट भोजन मिल जाए। उसका इतना सोचना था कि सामने खूब सारा स्वादिष्ट भोजन आ गया। उसने पेट भर भोजन किया। भोजन करने के बाद उसके मन में विचार आया कि इस निर्जन वन में मेरे सोचते ही पानी और खाना कहां से आया? कहीं ये भूत-प्रेत की माया तो नहीं? यदि इस समय कोई भूत आकर मुझे खा जाए तो? इस विचार से वह डर गया और कांपने लगा। उसका इतना सोचना था कि सचमुच एक भूत वहां आ उपस्थित हुआ और बोला मैं तुम्हें खाऊंगा। वह व्यक्ति बहुत बुरी तरह डर गया और सोचने लगा कि हो न हो इस वृक्ष में कोई जादू है जो मेरे मन के विचारों को जान लेता है और फिर वैसा ही हो जाता है। पहले उसने मुझे पानी दिया, फिर भोजन दिया और अब भूत के रूप में मृत्यु। अचानक उस व्यक्ति के मन में इसके विपरीत भाव आया और कहने लगा, लेकिन यह तो हो नहीं सकता। जरूर मैं कोई सपना देख रहा हूं। भूत-वूत कुछ नहीं होता और मैं किसी भूत-प्रेत से नहीं डरता। उसका ये सोचना था कि भूत गायब। वस्तुत: वह व्यक्ति एक कल्पवृक्ष के नीचे बैठा था। कहते हैं कि कल्पवृक्ष सब इच्छाओं को पूरी करने वाला होता है। उसके नीचे बैठकर जो भाव मन में लाए जाएं अथवा इच्छा की जाए, वह अवश्य पूरी होती है। लेकिन किसी इच्छा के पूर्ण होने के लिए सबसे जरूरी चीज है मन में उस इच्छा का होना। इच्छा के अभाव में कल्पवृक्ष भी फल नहीं दे सकता। कामना नहीं तो कैसी कामनापूर्ति हर फल या परिणाम किसी कर्म के फलस्वरूप ही उत्पन्न होता है। कर्म नहीं करेंगे तो फल नहीं मिलेगा। कर्म की प्रेरणा विचार से ही उत्पन्न होती है और विचार का उद्गम है मन। कल्पवृक्ष भी तभी इच्छा पूरी करेगा जब मन में कोई इच्छा उत्पन्न होगी। दूसरी महत्वपूर्ण बात ये है कि जैसी इच्छा होगी वैसी ही परिणाम आएगा। भोजन और पानी की इच्छा हो तो भोजन-पानी और मृत्यु का भय हो तो मृत्यु का सामना। हमारी इच्छापूर्ति हमारी सोच का ही परिणाम है। हमारी सफलता-असफलता, सुख-दुख, लाभ हानि, आरोग्य-रुग्णता सब हमारी सोच द्वारा निश्चित होते हैं। सकारात्मक सोच का अच्छा परिणाम तथा नकारात्मक सोच का बुरा परिणाम। सफलता, सुख, समृद्धि और आरोग्य हमारी सकारात्मक सोच या भावधारा का परिणाम है। असफलता, दुख, हानि और रुग्णता हमारी नकारात्मक सोच का परिणाम है। सफलता, सुख-समृद्घि, आय, स्वास्थ्य तथा आयु के प्रति अविश्वास, संशय तथा भय ही इनकी प्राप्ति में प्रमुख बाधा है। मनुष्य वास्तव में वही है जो उसकी सोच है।
कल्पवृक्ष की रक्षा करते हुए किन्नर और किन्नरी





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