बिस्किट, चिप्स और चॉकलेट में एनीमल फेट

लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए मिलाते हैं चर्बी का घोल
ईनंबरिंग में छिपा है रहस्य
अविनाश रावत
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बीते दिनों उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों से जब्त मैगी के सैंपलों की प्रयोगशाला में जांच पर पाया गया कि इस फास्ट फूड में भारी मात्रा में मोनोसोडियम ग्लूटामेट (एमएसजी) और लेड है। लेड की मात्रा 17 पार्ट्स प्रति मिलियन है, जबकि अनुमति महज 0.01 पीपीएम की ही है। मैगी की जांच करने पर उसमें
मोनोसोडियम ग्लूटामेट केमिकल (एमएसजी) की मात्रा तय सीमा से ज्यादा पाई गई है। जांच नतीजों के बाद भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) को लिखित में मैगी का लाइसेंस रद्द करने के लिए कहा है। मैगी के सैंपल की जांच कोलकाता की रेफरल लैबोरेट्री से करवाई गई है और अब एफएसएसएआई देशभर इस बात की पुष्टि करने के लिए देशभर से मैगी के सैंपल मंगवाकर जांच कर रहा है।
2 मिनट में पकने वाली मैगी नूडल सभी वर्ग और उम्र के लोगों की फेवरेट होती है. लेकिन इस फास्ट फूड को लेकर चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। मैगी में इस जहरीले केमीकल के साथ ही लंबे समय तक सुरक्षित रखने के

लिए सुअर का मांस भी मिलाया जा रहा है। सालभर पहले करीब एक महीने की पड़ताल, कई तरह की जांच और फैक्ट पता करने के बाद मैंने एक बड़ी खबर का खुलासा किया था जिसमें सामने आया कि बिस्टिक, चिप्स और चॉकलेट के साथ ही सैकड़ों खाने-पीने के वेजीटेरियन प्रॉडक्ट्स में एनीमल फेट मिलाया जा रहा है। इन प्रॉडक्ट्स में यह फैट इमल्सीफायर (घोल) के तौर पर मिलाया जा रहा है। लोगों को आसानी से इसका पता न चले इसके लिए कंपनियों ने यूरोप की तर्ज पर इसे ईकोडिंग के जरिए पैकेट पर लिखा हुआ है। चिप्स, बिस्कुट , च्युंगम , टॉफी ,कुरकुरे ओर मैगी और ज्यादा विदेशी कंपनियों के आयटम आदि में दिखेगे।
प्रिर्जवेटिंव के तौर पर मिलाते हैं चर्बी का घोल
बिस्कुट, चिप्स, चॉकलेट सहित तमाम खाने पीने की चीजों को ज्यादा दिन तक सुरक्षित रखने के लिए प्रिर्जवेटिव के तौर पर अलग-अलग जानवरों की चर्बी का घोल मिलाया जा रहा है। पड़ताल के मुताबिक सामने आया है कि खाने पीने की ज्यादातर चीजों की चार से छह महीनों की एक्सपायरी होती है। अगर इन चीजों में प्रिर्जवेटिव के तौर पर चर्बी का घोल न मिलाया जाए तो यह महज दो से तीन महीनों में ही खराब हो जाती है, इसीलिए लंबे समय तक इन्हें सुरक्षित रखने के लिए प्रिर्जवेटिव के तौर पर इनमें चर्बी का घोल मिलाया जा रहा है।
खाने की चीजों के इंग्रीडिएंश में इस तरह से ई कोडिंग होती है
यूरोप की तर्ज पर लिखते हैं ईकोडिंग1993 में यूरोपियन कानून की तर्ज पर भारत में खाद्य पदार्थों को दो भागों में वर्गीकृत करते हुए मांसाहार के पैकेट पर लाल चिन्ह और शाकाहार के पैकेट पर हरा चिन्ह लगाए जाने का कानून बनाया गया, लेकिन असल में सरकारी अधिसूचना में मांसाहार के अंतर्गत  बाल,पंख, सींग, नाखून, चर्बी, अंडे की जर्दी को बाहर रखा गया है। इसके चलते कई कंपनियों ने अपने उत्पादों में इन अशुद्ध पदार्थो का
उपयोग कर पैकेट पर हरा चिन्ह लगाकर बाजार में बेच रहे हैं। खाने-पीने के उत्पादों में ये अशुद्ध वस्तुएं अन्र्तघटक तत्व ड्डस्रस्रद्बह्लद्ब1द्गह्य के रूप में मिलाए जा रहे हैं। इन अन्र्तघटक तत्वों को अलग-अलग श्रेणियों में बांटा गया है। colouring, agents,conservation agents,anti-oxidants, emulsifiers, stabilizers & thickener, anti-coagulants, taste enhasers, modified stsrches. अन्तर्घटक तत्वों के नाम काफी बड़े होने के कारण पैकेट पर लिखना संभव नहीं होने से हमारे देश में भी यूरोपियन कानून की तर्ज पर इनके लिए ई-नंबरिंग सिस्टम (ईएनएस प्रणाली) को लागू किया गया है।
इंटरनेट पर उपलब्ध है ईनंबरिंग का अर्थबारीक अक्षरों में लिखे ई-नंबरिंग का मतलब क्या होता है, इंटरनेट पर से  ईकोडिंग या ईनंबरिंग से आसानी से सर्च किया जा सकता है। इस सूची से पता किया जा सकता है कि ई-नंबरिंग वाले किस पदार्थ में क्या क्या होता है। कुछ कंपनियों के उत्पदों पर ई-नंबरिंग के बजाए अन्र्तघटक तत्वों की कैटेगरी के नाम लिखे होते हैं जिससे यह भ्रम पैदा होता है कि ये अन्र्तघटक तत्व शाकाहार से बने हैं या मांसाहार से जबकि वह दोनों से बना हो सकता है।
पिज्जा भी है नॉनवेजशहर की अलग-अलग पिज्जा दुकानों पर आप जो पिज्जा खाते हैं उसमें टेस्ट लाने के लिये E-631 नाम से flavor Enhancer  नाम का तत्व मिलाया जाता है। इसे आप ई कोडिंग में सर्च करेंगे तो पता चलेगा कि पिज्जा भी एक तरह से नॉन वेजीटेरियन है और यह E-631 सुअर या गाय के मांस से बनता है। इसी तरह मैगी के पैक पर ingredient flavor (E-635 ) लिखा होता है। ई कोडिंग में इसका इसका मतलब है कि मैगी में चर्बी का फ्लेवर मिलाया जाता है।
ई कोड को बदला आईएनएस मेंडीबी स्टार की पडताल के मुताबिक पारले के साथ ही कुछ कंपनियों ने ई कोडिंग को आईएनएस कोड में तब्दील कर दिया है। पारले कंपनी ने अपने लगभग सभी प्रॉडक्ट से ई नंबरिंग हटा दिया है। लगातार हो रही शिकायतों के चलते कंपनी ने अपनी पॉलिसी बदल ली है। अब पारले कंपनी के ज्यादातर प्रॉडक्ट्स पर ई नंबरिंग के जगह पर या तो आईएनएस लिखा जा रहा है या फिर सीधे उन चीजों का नाम लिखा जा रहा है जो प्रॉडक्ट में मिलाई जाती हैं।  हालांकि वनस्पतिशास्त्री डॉ अवनीश पांडे के मुताबिक ई कोडिंग और आईएनएस कोडिंग एक जैसी ही होती है। इन दोनों में कोई अंतर नहीं है।

किस प्रोडक्ट पर क्या होता है कोड़
पारले    के्रक जैक        बिस्किट    E 471, E 322, E 481
हाईजैक                बिस्किट    E 471, E 322, E 481
पारले जी            बिस्किट    E 471, E 322, E 481
मुनैको                बिस्किट    E 471, E 322, E 481
औरेंज क्रीम            बिस्किट    E 471, E 322, E 481
मैरी                बिस्किट    E 471, E 322, E 481
क्रीम बोरबन            बिस्किट    E 471, E 322, E 481
पारले २०-२०            बिस्किट    E 471, E 322, E 481
किसमी बार             टॉफी        E 471
बटर कप            टॉफी        E 322, E 481
गोल गप्पा            टॉफी        E 471
फ्रूटी मैंगो            जूस        E 471, E 322, E 481
स्पेशल बटर कुकीज                        E 471, E 322
स्पेशल चौको क्रीम                   E 322
सनफीस्ट            बिस्किट    E 471, E 322, E 481
स्पेशल                बिस्किट    E 322
स्नैकी जिगजैग        बिस्किट    E 471, E 481
सनफीस्ट च्लूकोज        बिस्किट    E 322
5 स्टार             चॉकलेट     E 471, E 476, E 442
डेरी मिल्क            चॉकलेट    E 476
वार्न वीटा             मिल्क पाउडर     E 471, E 322
इकलेयर्स            टॉफी        E 471, E 476
मिल्क ट्रीट            टॉफी        E 422, E 476
जेम्स                टॉफी        E 476
मिल्क चॉकलेट            चॉकलेट    E 471, E 476
मेगी नूडल्स            नूडल्स        E 631, E 627
मैगी नेसले बोरबन        बिस्किट    E 471
क्लासिक क्रीम            बिस्किट    E 471, E 322, E 481
सीएनसी            बिस्किट    E 471, E 322, E 481
स्नैक्स जिग जैग        बिस्किट    E 471, E 322, E 481
सेंटर फ्रेश            च्वैइिंग गम    E 471, E 422
महालेक्ट्रो            टॉफी        E 322
जेम्स                टॉफी        E 322, E 476
इक्लेयस4             टॉफी        E 471, E322
टॉफी चॉकलेट            टॉफी        E 471, E 322, E 476

इन कोड्स में होते हैं ये तत्वE 322 - गाय का मांस
E 422 - एल्कोहोल तत्व
E 442 - एल्कोहोल तत्व ओर केमिकल
E 471 - गाय का मास ओर एल्कोहोल तत्व
E 476 - एल्कोहोल तत्व
E 481 - गाय ओर सुअर के मांस के संगटक
E 627 - घातक केमिकल
E 472 - गाय + सुअर + बकरी के मांस के संगटक
E 631  सुअर कि चर्बी का तेल

वनस्पतिशास्त्री डॉ. अवनीश पांडे के साथ की गई मेरी पड़ताल के मुताबिक दुनियाभर में डिब्बाबंद वैक्यूम्ड रैपर्स में रखकर बेची जा रही खाद्य सामग्रियों के एक विशेष रंग व स्वाद के पीछे इनमें मिलाए जाने वाले एडिटीव्स हैं, जिन्हें निर्माता ई-नंबर्स से कोड करते हैं। साठ साल पहले तक पिग फैट (सुअर की चर्बी) का उपयोग साबुन निर्माण में शुरू हुआ था। बाद में इसी फैट को कैमिकली प्रोसेस करके खाद्य पदार्थों में उपयोग किया जाने लगा। यूरोपियन देशों में तो ऐसे फैट को किसी खाद्य पदार्थ में उपयोग करने पर पैकेट के ऊपर पिग फैट लिखने का नियम भी जारी किया, लेकिन लोगों के विरोध के बाद ऐसे उत्पादों की बिक्री में भारी गिरावट आई। अब इन्हीं कंपनियों ने नई तकनीक के जरिए ई-कोडिंग शुरू किया है। कई प्रोडक्ट्स जैसे चिप्स, चॉकलेट्स, बिस्क्ट्सि इत्यादि खाद्य सामग्रियों के इन्ग्रिडियेंट्स में ई-नंबर्स लिखे होते हैं। कई ई-नंबर्स के तत्व वनस्पतियों से बनाए जा सकते हैं, लेकिन उसकी प्रक्रिया बहुत महंगी होती है, इसलिए इन्हें सुअर व गाय की चर्बी से आसानी से व कम कीमत में प्राप्त किया जाता है। खाद्य पदार्थों में इन्हें मिलाने से ये लंबे समय तक सुरक्षित रखते हैं और स्वाद भी बना रहता है। ई-100, ई-110, ई-120, ई-322, ई-371, ई-481, ई-377 सहित करीबन 53 ई-कोड्स ऐसे हैं, जिनमें पिग फैट (सुअर की चर्बी) व गाय की चर्बी का उपयोग किया जाता है।
खुद एक वकील होने के नाते मैंने जो अध्ययन किया है उसके मुताबिक खाद्य पदार्थों में ग्रीन मार्क लगाकर उसके अंदर के कंटेट में मांसाहारी चीजें या घोल मिलाना खाद्य संरक्षण अधिनियम के 2013 के प्रवधानों का उलंघन है। इसमें आईपीसी धारा 295-295 A धार्मिक भवानाओं को ठेस पहुंचाने  का भी मामला बनता है। उपभोक्ता संरक्ष्ण अधिनियम 1986 की धारा 12 के तहत परिवाद लगाकर मानसिक वेदना के लिए क्षपिपूर्ति मांगी जा सकती है। सभी धाराओं में ऐसा अपराध करने वाले को  छह महीने से लेकर दो साल तक की सजा और जुर्माना ५० हजार से लेकर पांच लाख तक के जुर्माने का प्रावधान है।  इस पूरे मामले को लेकर मैंने राष्ट्रीय संत भैय्यूजी महाराज और जैन मुनिश्री विशेषसागर महाराज से इस मुद्दे पर करीब एक घंटे बात की। उन्होंने कहा है खाद्य पदार्थो में हरा निशान लगाकर उसके अंदर मांसाहारी तत्व मिलाकर बेचना गलत है। ऐसा करने वाले लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा रहे हैं। बिस्किट, चिप्स चॉकलेट सहित लगभग सभी तरह के फास्ट-फू्ड्स में घोल के तौर पर सुअर, गाय, बकरी की चर्बी के साथ ही अल्कोहलिक तत्वों का इस्तेमाल किया जा रहा है। ईकोडिंग क्या है और उसे किन चीजों से प्राप्त किया जाता है, इसके बारे में लोगों को नहीं पता होता है। आम आदमी खाद्य पदार्थो का सेवन सिर्फ हरा या लाल निशान देखकर करते हैं। उसके अंदर किस तरह की चीजे मिलाई जाती है उसपर उनका ध्यान नहीं होता। विस्किट, चिप्स, चॉकलेट इत्यादि में सुअर,गाय व बकरी की चर्बी घोल के तौर पर मिलाए जाने को लेकर हमारे पास जानकारी आयी है। इस तरह खाद्य पदार्थ बनाने वाली कंपनियां लोगों की आस्था के साथ चल कर रही हैं। इन दोनों संतों ने अपने प्रवचनों के माध्यम से जनता को इस ओर जागरुक करने के साथ ही सरकार से इस दिशा में कार्रवाई करने का आग्रह करने की बात भी कही। 

To read News click on this link...
http://www.bhaskar.com/news/c-8-1174752-NOR.html

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