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कांच की कला का बेहतरीन नमूना है कांच मंदिर

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अविनाश रावत शीतलामाता बाजार स्थित कांच मंदिर, इंदौर का एक भव्‍य मंदिर है। सफेद पत्‍थर से बने इस मंदिर को एक मध्‍ययुगीन हवेली के रूप में बनाया गया है जिसमें एक चंदवा बालकनी और शिकारा भी है। मंदिर का अंदरूनी हिस्‍सा पूरी तरह कांच से निर्मित है, जिसकी वजह से इसे कांच मंदिर कहा जाता है। 20 वीं सदी के मशहूर कपास व्‍यापारी हुकुमचंद ने इसे बनवाया था। यह एक दिगंबर जैन मंदिर है। 1912 में 125 बाय 30 फीट के प्लॉट पर मंदिर का निर्माण कार्य शुरू किया हुआ। पूरा मंदिर बनाने में करीब 9 साल लगे। विक्रम सवंत १९७८ मिति आषाढ़ सुदी ७ सोमवार सन 1921 में इसमें मूर्ति स्थापना कि गयी। मंदिर के मध्य में श्री शांतिनाथ भगवान व उनके दाहिने हाथ कि और श्री चंद्रप्रभा भगवान एवं बायीं और आदिनाथ भगवान विराजे है। शांतिनाथ भगवान कि मूर्ति काले पत्थर कि बनी है जिसे जयपुर में बनवाया गया। मंदिर में बेल्जिम से लाये गए कांच का शानदार काम हुआ है। मंदिर के अंदर दीवारें, छत, खंभे, फर्श, दरवाजे आदि सब कुछ कांच से तैयार किया गया है। मंदिर की आंतरिक संरचना में कई रंगों के कांच को लगाया गया है जो इमारत को शान

खत्म हो रहे हैं नेचुरल रिचार्जिंग के स्त्रोत

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अविनाश रावत रासायनिक खादों व कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग और हर तरफ हो रहे सीमेंटीकरण ने बिल बनाकर रहने वाले जीव जंतुओं का लगभग सफाया कर डाला है। यही कारण है कि बारिश के पानी की नेचुरल रिचार्जिंग करने वाले प्राकृतक स्त्रोत भी खत्म होते जा रहे हैं और जल संकट लगातार बढ़ता जा रहा है। पहले चींटी दीमक चूहे, स्याह, गोह, केंचुए, नेवला आदि जीवों की प्रचुरता से हर तरफ उपलब्ध थी। यह ने केवल खेतों में किसानों के मददगार की भूमिका निभाते थे बल्कि इनमें से कुछ शहर और गांव में भी रहते थे। यह सभी बिल बनाकर रहते थे। यही कारण था कि कुछ साल पहले शहर से लेकर गांव और खेतों तक में हजारों लाखों बिल नजर आ जाया करते थे। यह बिल एक ओर इन जीवों की पनाहगाह की भूमिका निभाते थे वहीं दूसरी ओर वर्षा जल संरक्षण में भी खास भूमिका निभाते थे। बारिश होने पर इन बलिों के माध्यस से पानी जमीन के भीतर चला जाया करता था। यही कराण है कि आज के मुकाबले बारिश का पानी बहुत कम व्यर्थ होता था। और जल स्तर काफी अच्छा हुअआ करता था। वक्त के साथ लोगों की सोच बदली और कभी कृषि मित्र कहलाने वाली यह जीव लोगों को बैरी नजर आने लगे। लोगो न

राम नाम लिखने की शर्त पर होता है मंदिर में प्रवेश

अविनाश रावत पिछले दिनों बंगाली चौराहे से बायपास की ओर जाते समय वैभवनगर में एक मंदिर दिखा गया। मैंने सोचा अब तक इस मंदिर में नहीं गया तो क्यों न एक बार चलकर इसे भी देख लिया जाए। अपने एक दोस्त के साथ जब मंदिर तक पहुंचा तो पता चला कि यह अपने तरह का एक अजीबोगरीब मंदिर हैं। यहां भगवानों के साथ साथ रामायण और महाभारत काल के राक्षसों की मूर्तियों की भी स्थापना की गई है। मंदिर के द्वार पर पहुंचते ही इसके अलग होने का अहसास शुरू हो जाता है क्योंकि यह प्रवेश भी सशर्त दिया जाता है। मुख्य द्वार पर सूचना पटल टंगा हुआ था जिस पर लिखा था कि यदि आपको यह अजीबोगरीब मंदिर अंदर से भी देखना है तो यहां आप 108 बार राम नाम लिखने की शर्त स्वीकार करने के बाद ही प्रवेश कर सकते हैं। मंदिर के   परिसर में इसके लिए चेतावनी भरे बोर्ड पर बड़े बड़ेे अक्षरों में कई जगह सूचना लिखी हुई है। अंदर से लौट रहे कुछ लोगों से बात की तो पता चला कि मंदिर म