खत्म हो रहे हैं नेचुरल रिचार्जिंग के स्त्रोत


अविनाश रावत

रासायनिक खादों व कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग और हर तरफ हो रहे सीमेंटीकरण ने बिल बनाकर रहने वाले जीव जंतुओं का लगभग सफाया कर डाला है। यही कारण है कि बारिश के पानी की नेचुरल रिचार्जिंग करने वाले प्राकृतक स्त्रोत भी खत्म होते जा रहे हैं और जल संकट लगातार बढ़ता जा रहा है।
पहले चींटी दीमक चूहे, स्याह, गोह, केंचुए, नेवला आदि जीवों की प्रचुरता से हर तरफ उपलब्ध थी। यह ने केवल खेतों में किसानों के मददगार की भूमिका निभाते थे बल्कि इनमें से कुछ शहर और गांव में भी रहते थे। यह सभी बिल बनाकर रहते थे। यही कारण था कि कुछ साल पहले शहर से लेकर गांव और खेतों तक में हजारों लाखों बिल नजर आ जाया करते थे। यह बिल एक ओर इन जीवों की पनाहगाह की भूमिका निभाते थे वहीं दूसरी ओर वर्षा जल संरक्षण में भी खास भूमिका निभाते थे। बारिश होने पर इन बलिों के माध्यस से पानी जमीन के भीतर चला जाया करता था। यही कराण है कि आज के मुकाबले बारिश का पानी बहुत कम व्यर्थ होता था। और जल स्तर काफी अच्छा हुअआ करता था। वक्त के साथ लोगों की सोच बदली और कभी कृषि मित्र कहलाने वाली यह जीव लोगों को बैरी नजर आने लगे। लोगो ने इनका सफाया शुरू कर दिया। इन जीवों के घर में नजर आने पर कीटनाशकों से इन्हें मारा जाने लगा तो खेतों में रासायनिक खाद और कीटनाशकों के बेतहाशा उपयोग से इनका लगभग सफाया हो गया। इसके चलते अब बिल भी नहीं बनते हैं और पानी को भीतर जाने की कोई जगह भी नहीं मिलती है। बारिश होने पर पूरा पानी बहकर नदियों के जरिए समुद्र में चला जाता है। इसी तरह शहर हो यहा गांव हर तरफ सीमेंटीकरण भी बहुत बढ गया है। घर के भीतर ही नहीं बल्कि आंगन नाली सडक़ सब पक्के हो गए है इससे आबादी वाले क्षेत्रों में भी बिल बनाने के लिए जगह नहीं बची है। इससे जो कुछ जीव बच गए हैं वे भी आबीदी से दूर चले गए है। इसका असर इस रूम में साफ नजर आता है कि आबादी वाले क्षेत्रों में जल स्तर अपेक्षाकृत अधिक गहराई तक जा चुका है।

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