मरहम बन जाती है माटी


अविनाश रावत
एक हजार लीटर छाछ, दो सौ लीटर सरसों का तेल, सौ किलो गेरु, 20 लीटर नीबू का रस, 10 किलो हल्दी सब का सब डाल दिया जाता है मिट्टी में और माटी बन जाती है मरहम।
पिछले दिनों मप्र केसरी कुश्ती प्रतियोगिता देखने का मौका मिला। सबकी नजरें कुश्ती पर थीं लेकिन न जाने क्यों मेरा ध्यान अखाड़े की माटी पर टिका हुआ था। दिमाग जानने को बेताब था कि आखिर इसमें ऐसा होता क्या है कि पहलवानों को न चोटें आती हैं न ही उनका अहसास होता है। प्राचीन काल से भारत में कुश्ती का खेल खेला जाता रहा है अखाड़ों में जोर आजमाइश और कड़े व्यायाम के इस खेल का समय समय पर स्वरूप बदला मगर उसकी मौलिकता हमेशा कायम रही और आज भी है। दांव पेंच का रोमांच अरसे से लोगों को लुभाता आया है। हो भी क्यों नहीं आखिर देशी पहलवानों के दाव पेंच होते ही इतने बिरले हैं कि देखने वाला देखता ही रह जाए। पहलवान जिस माटी पर दाव पेंच दिखाता है वह कोई साधारण माटी नहीं होती। उसे तैयार करने में भी भारी जोर आजमाइश करनी पडती है। इसे भी दंगल के लिए विशेष तौर पर तैयार किया जाता है। पहलवान सादी माटी में कुश्ती लड़ते थे और चोटिल होते थे लिहाजा उन्हें चोट से बचाने व राहत देने के लिए आर्युवेद के जानकार हमारे पूर्वजों ने प्राचीन काल में माटी को ही मरहम बना दिया और तब से ही यह सिलसिला चला आ रहा है। दंगल के लिए अखाड़े की माटी में छाछ,गेरु, नीबू का रस, हल्दी, सरसों का तेल सहित अन्य सामग्री मिलायी जाती है। दरअसल इन सभी चीजों के अपने अपने गुण हैं जिनके कारण वे अखाड़े में पहलवानों को राहत देने का काम करती है। हल्दी एन्टीसेप्टिक होती है लिहाजा चोट लगने पर इन्फेक्शन के खतरे को रोकती है। पहलवानों को पसीना बहुत निकलता है माटी में मिलाया गया सौ किलो गेरु पहलवानों का पसीना सोखता है और माटी को दूषित होने से बचाता है। एक हजार लीटर छाछ और २० लीटर नीबू के रस के साथ १० किलो हल्दी का मिश्रण इन्फेंक्शन रोकने के साथ ही अंदरूनी चोट व पहलवानों को चर्म रोग से भी बचाता है। माटी को चिकनी और नरम बनाने के लिए इमसें दो सौ लीटर सरसों का तेल मिलाया जाता है। तेल पहलवानों के बदन की चिकनाई भी बनाए रखता है और उन्हें रगड़ से भी बचाता है। इतना ही नहीं इस माटी की एक अन्य खासियत भी है। यह शरीर को गठीला बनाने के साथ ही पहलवानों का रंग भी निखारती है। नरम माटी पर जब कडक़ पहलवानों की भिडंत होती है तो उसमें पहलवानों के लिए माटी वाकई मरहम का ही काम करती है।

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