मानसिक और शारीरिक शांति प्रदान करता है शंख

अविनाश रावत
शंख बजाने में बचपने से ही मेरी विशेष रुचि रही है। ब्राह्म्ण कुल में जन्म लिया, दादाजी प्रसिद्ध ज्योतिष थे। पापा, चाचा और परिवार के ज्यादातर लोग पूजा पाठ करते हैं। जाहिर सी बात है पूजा के दौरान अक्सर ज्यादातर शंख बजाने का मौका मुझे ही मिलता रहा। वजह मेरी सांस बहुत लंबी और तेज है जिससे शंख की ध्वनि भी तेज और लंबी निकलती है। ढो़ल ग्यारस पर जब भी नरसिंह भगवान विमान में सवार होकर तालाब नगर भ्रमण और तालाब स्नान के लिए निकलते तो शंख बजाने का आनंद ही कुछ और था। कई सालों से इस विमान यात्रा  में नहीं पहुंच पाया फिर भी अपने पास एक शंख लेकर रखा है। रोजाना चार पांच बार शंख जरुर बजा लेता हूं। शंख मानसिक और शारीरिक दोनों तरह की शांति प्रदान करता है। शंख बजाने के फायदे और शंख की उत्तपत्ति से जु़ड़े कुछ तथ्य आपको बता रहा हूं।
शंख की उत्पत्ति संबंधी पुराणों में एक कथा वर्णित है। सुदामा नामक एक कृष्ण भक्त पार्षद राधा के शाप से शंखचूड़ दानवराज होकर दक्ष के वंश में जन्मा। विष्णु ने इस दानव का वध किया। शंखचूड़ के वध के पश्चात्‌ सागर में बिखरी उसकी अस्थियों से शंख का जन्म हुआ और उसकी आत्मा राधा के शाप से मुक्त होकर गोलोक वृंदावन में श्रीकृष्ण के पास चली गई। भारतीय धर्मशास्त्रों में शंख का विशिष्ट एवं महत्त्वपूर्ण स्थान है। मान्यता है कि इसका प्रादुर्भाव समुद्र-मंथन से हुआ था। समुद्र-मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में से छठवां रत्न शंख था। अन्य 13
रत्नों की भांति शंख में भी वही अद्भुत गुण मौजूद थे। विष्णु पुराण के अनुसार माता लक्ष्मी समुद्रराज की पुत्री हैं तथा शंख उनका सहोदर भाई है। अत यह भी मान्यता है कि जहाँ शंख है, वहीं लक्ष्मी का वास होता है। इन्हीं कारणों से शंख की पूजा भक्तों को सभी सुख देने वाली है। शंख की उत्पत्ति के संबंध में हमारे धर्म ग्रंथ कहते हैं कि सृष्टी आत्मा से, आत्मा आकाश से, आकाश वायु से, वायु आग से, आग जल से और जल पृथ्वी से उत्पन्न हुआ है और इन सभी तत्व से मिलकर शंख की उत्पत्ति मानी जाती है। भागवत पुराण के अनुसार, संदीपन ऋषि आश्रम में श्रीकृष्ण ने शिक्षा पूर्ण होने पर उनसे गुरु दक्षिणा लेने का आग्रह किया। तब ऋषि ने उनसे कहा कि समुद्र में डूबे मेरे पुत्र को ले आओ। कृष्ण ने समुद्र तट पर शंखासुर को मार गिराया। उसका खोल शेष रह गया। माना जाता है कि उसी से शंख की उत्पत्ति हुई। पांचजन्य शंख वही था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, शंखासुर नामक असुर को मारने के लिए श्री विष्णु ने मत्स्यावतार धारण किया था। शंखासुर के मस्तक तथा कनपटी की हड्डी का प्रतीक ही शंख है। उससे निकला स्वर सत की विजय का प्रतिनिधित्व करता है।
    शंख कई प्रकार के होते हैं और सभी प्रकारों की विशेषता एवं पूजन-पद्धति भिन्न-भिन्न है। उच्च श्रेणी के श्रेष्ठ शंख कैलाश मानसरोवर, मालद्वीप, लक्षद्वीप, कोरामंडल द्वीप समूह, श्रीलंका एवं भारत में पाये जाते हैं। शंख की आकृति (उदर) के आधार पर इसके प्रकार माने जाते हैं। ये तीन प्रकार के होते हैं - दक्षिणावृत्ति शंख, मध्यावृत्ति शंख तथा वामावृत्ति शंख। जो शंख दाहिने हाथ से पकड़ा जाता है, वह दक्षिणावृत्ति शंख कहलाता है। जिस शंख का मुँह बीच में खुलता है, वह मध्यावृत्ति शंख होता है तथा जो शंख बायें हाथ से पकड़ा जाता है, वह वामावृत्ति शंख कहलाता है। शंख का उदर दक्षिण दिशा की ओर हो तो दक्षिणावृत्त और जिसका उदर बायीं ओर खुलता हो तो वह वामावृत्त शंख है। मध्यावृत्ति एवं दक्षिणावृति शंख सहज रूप से उपलब्ध नहीं होते हैं। इनकी दुर्लभता एवं चमत्कारिक गुणों के कारण ये अधिक मूल्यवान होते हैं। इनके अलावा लक्ष्मी शंख, गोमुखी शंख, कामधेनु शंख, विष्णु शंख, देव शंख, चक्र शंख, पौंड्र शंख, सुघोष शंख, गरुड़ शंख, मणिपुष्पक शंख, राक्षस शंख, शनि शंख, राहु शंख, केतु शंख, शेषनाग शंख, कच्छप शंख आदि प्रकार के होते हैं। हिन्दुओं के 33 करोड़ देवता हैं। सबके अपने- अपने शंख हैं। देव-असुर संग्राम में अनेक तरह के शंख निकले, इनमे कई सिर्फ़ पूजन के लिए होते है।
महाभारत युद्ध और शंख -
गीता के प्रथम अध्याय के श्लोक 15-19 में लिखा है -
    पांचजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जय। पौण्ड्रं दध्मौ महाशंखं भीमकर्मा वृकोदर।।
    अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिर। नकुल सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ।।
    काश्यश्च परमेष्वास शिखण्डी च महारथ। धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजिताः।।
    द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वश पृथिवीपते। सौभद्रश्च महाबाहुः शंखान्दध्मुः पृथक्पृथक्।।
- अर्थात् श्रीकृष्ण भगवान ने पांचजन्य नामक, अर्जुन ने देवदत्त और भीमसेन ने पौंड्र शंख बजाया। कुंती-पुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनंतविजय शंख, नकुल ने सुघोष एवं सहदेव ने मणिपुष्पक नामक शंख का नाद किया। इसके अलावा काशीराज, शिखंडी, धृष्टद्युम्न, राजा विराट, सात्यकि, राजा द्रुपद, द्रौपदी के पाँचों पुत्रों और अभिमन्यु आदि सभी ने अलग-अलग शंखों का नाद किया।
महाभारत में युद्ध के आरंभ, युद्ध के एक दिन समाप्त होने आदि मौकों पर शंख-ध्वनि करने का ज़िक्र आया है। महाभारत काल में सभी योद्धाओं ने युद्ध घोष के लिए अलग-अलग शंख बजाए थे। महाभारत काल में श्रीकृष्ण द्वारा कई बार अपना पंचजन्य शंख बजाया था। महाभारत युद्ध के समय भगवान श्रीकृष्ण ने पांचजन्य शंख को बजा कर युद्ध का जयघोष किया था। कहते है कि यह शंख जिसके पास होता है उसकी यश गाथा कभी कम नहीं होती। महाभारत के इसी युद्ध में अर्जुन ने देवदत्त नाम का शंख बजाया था। वहीं युधिष्ठिर के पास अनंत विजय नाम का शंख था, जिसे उन्होंने रण भूमि में बजाया था। इस शंख कि ध्वनि की ये विशेषता मानी जाती है कि इससे शत्रु सेना घबराती है और खुद कि सेना का उत्साह बढता है। भीष्म ने पोडरिक नामक शंख बजाया था। इस शंख की आवाज़ से कौरवों की सेना में हलचल मच गई थी।
शंख की आकृति और पृथ्वी की संरचना समान है नासा के अनुसार - शंख बजाने से खगोलीय ऊर्जा का उत्सर्जन होता है जो जीवाणु का नाश कर लोगो को ऊर्जा व् शक्ति का संचार करता है। वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि शंख की आवाज से वातावरण में मौजूद कई तरह के जीवाणुओं-कीटाणुओं का नाश हो जाता है। कई परीक्षणों से इस तरह के नतीजे मिले हैं। 1928 में बर्लिन यूनिवर्सिटी ने शंख ध्वनि का अनुसंधान करके यह सिद्ध किया कि इसकी ध्वनि कीटाणुओं को नष्ट करने कि उत्तम औषधि है।

शंख का चिकित्सकीय महत्व
शंख में १००% कैल्शियम के साथ ही फास्फोरस व गंधक के गुण होने की वजह से यह फायदेमंद है। इसमें रात को पानी भर के पीने से कैल्शियम की पूर्ति होती है। इस पानी का सेवन करने से हड्डियां मजबूत होती हैं। शंख में भरा पानी पीने से वाणी संबंधी दोष भी समाप्त होते हैं। यह दांतों के लिए भी लाभदायक है। शंख में पानी रख कर पीने से मनोरोगी को लाभ होता है साथ ही उत्तेजना काम होती है।  शंख बजाने से योग की तीन क्रियाएं एक साथ होती है - कुम्भक, रेचक, प्राणायाम। शंख बजाने से हृदयाघात, रक्तचाप की अनियमितता, दमा, मंदाग्नि में लाभ होता है। शंख बजाने से फेफड़े का व्यायाम होता है। शोध के मुताबिक अगर श्वास का रोगी नियमि‍त तौर पर शंख बजाए, तो वह बीमारी से मुक्त हो सकता है। शंख बजाने से फेफड़े पुष्ट होते है। शंख की ध्वनि से दिमाग व् स्नायु तंत्र सक्रिय रहता है। आयुर्वेद के मुताबिक, शंखोदक के भस्म के उपयोग से पेट की बीमारियां, पथरी, पीलिया आदि कई तरह की बीमारियां दूर होती हैं. हालांकि इसका उपयोग एक्सपर्ट वैद्य की सलाह से ही किया जाना चाहिए।
शंख का धार्मिक महत्व
शंख का धार्मिक महत्व भी है। शंख को इसलिए भी शुभ माना गया है, क्योंकि माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु, दोनों ही अपने हाथों में इसे धारण करते हैं। समुन्द्र मंथन के दौरान 14 रत्नो में से ये आठवां रत्न है, सुख - सौभाग्य की वृद्धि के लिए इसे अपने घर में स्थापित करें। दक्षिणावर्ती शंख को लक्ष्मी स्वरुप कहा जाता है इसके बिना लक्ष्मी जी की आराधना पूरी नहीं मानी जाती है। शंख में दूध भर कर रुद्राभिषेक करने से समस्त पापो का नाश होता है। घर में शंख बजाने से नकारात्मक ऊर्जा का व् अतृप्त आत्माओ का वास नहीं होता है। दक्षिणावर्ती शंख से पितरो का तर्पण करने से पितरो की शांति होती है। शंख से स्फटिक के श्री यन्त्र अभिषेक करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
शंख का ज्योतिषिय महत्व
    शंख का ज्योतिष में महत्व भी है। सोमवार को शंख में दूध भर कर शिव जी को चढाने से चन्द्रमा ठीक होता है। मंगलवार को शंख बजा कर सुन्दर काण्ड पढ़ने से मंगल का कुप्रभाव काम होता है। शंख में चावल भर के रखे और लाल कपडे में लपेट कर तिजोरी में रखें माँ अन्नपूर्णा की कृपा बानी रहती है। बुधवार को शालिग्राम जी को शंख में जल व तुलसी पत्र डाल कर अभिषेक करने से बुध ग्रह ठीक होता है। शंख को केसर से तिलक कर पूजा करने से भगवन विष्णु व् गुरु की प्रसन्ता मिलती है। शंख सफ़ेद कपड़े में रखने से शुक्र ग्रह बलवान होता है। शंख में जल ड़ाल कर सूर्ये देव को अर्घ्य देने से सूर्य देव प्रसन्न होते हैं। शंख की पूजा करने से ऐश्वर्ये प्राप्त होता है। वास्तुशास्त्र के मुताबिक भी शंख में ऐसे कई गुण होते हैं, जिससे घर में सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित होती है। शंख की आवाज से 'सोई हुई भूमि' जाग्रत होकर शुभ फल देती है।

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