1716 में इदौर में था कर मुक्त व्यापार केन्द्र

नंदलाल मंडलोई के प्रस्ताव पर मालवा के मुगल सूबेदार की अनुमति के बाद इंदौर में कर मुक्त व्यापार केन्द्र स्थापित किया गया। इसे आज भी हम नंदलालपुरा के नाम से जानते हैं। इंदौर की बसाहट में रावला (मंडलोई) परिवार की भूमिका अहम है। 
राव राजा नंदलाल मंडलोई
 रावला (मंडलोई) इंदौर में मंडलोई परिवार है जो मूलत: श्रीगौड़ ब्राह्मण हैं। मालवा में आ बसने से ये श्रीगौड़ मालवीय कहलाए। ये मुगलों के पदाधिकारी हुआ करते थे। 15वीं-16वीं सदी में सूवा मालवा, उज्जैन सरकार, पहगना देपालपुर और कस्बा इंदौर कहलाता था। इंदौर एक छोटा कस्बा था जिसका मुख्यालय कंपेल हुआ करता था। इस परिवार के मूल पुरुष बलराम चौधरी थे। रावला परिवार के पास अक्टूबर 1664 की सनद है

जिसमें चूड़ामल चौधरी की नियुक्ति का विवरण है जो मालवा के बजीर खां मोहम्मद ताहिर खुरासानी ने जारी की थी।
2 इस सनद में सुंदरदास के पुत्र उदेराम के पौत्र चिंतामण की नि:संतान मृत्यु के कारण बलराम जी के पुत्र चूडामण को नियुक्त किये जाने का उल्लेख है। चूडामण के पुत्र नंदलाल हुए इसे 1700 ईस्वी में इंदौर का कार्यभार मिला तब भी मुख्यालय कंपेल था। नंदलाल मंडलोई कुशाग्र बुद्धि वाले राजनैतिज्ञ थे। उन्होंने इंदौर में व्यापार को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मुगलों के समक्ष इंदौर में व्यापारिक केन्द्र बनाने की मांग रखी। मंडलोई दफ्तर में उपलब्ध फारसी दस्तावेजों के मुताबिक 1716 में मालवा के मुगल सूबेदार ने इसकी अनुमति दी। इसके बाद इंदौर में बसी बस्ती नंदलालपुरा कहलायी। जहां कर मुक्त व्यापार केन्द्र रखा गया।
बड़ा रावला- जहां रावराजा नंदलाल मंडलोई के वंशज आज भी रहते हैं
इंदौर होकर अपना शासन आगे बढ़ाने के लिए पेशवाओं ने अपने सूबेदार मल्हाराव होलकर की मदद लेकर रावराजा नंदलाल मंडलोई से मित्रता कर ली। पुरातत्व विभाग में उपलब्ध दस्तावेजों के मुताबिक 1732 में मल्हारराव होलकर को इंदौर की की जागीरदारी सौंपी गई लेकिन तब भी शासक रावराज नंदलाल मंडलोई ही थे। इसमें इंदौर के नौ गांव शामिल थे और कंपेल का मुख्यालय भी होलकरों के अधीन था। अहिल्याबाई के समय तक कचहरी महल कंपेल का उपयोग किया गया। मल्हारराव होलकर ने इंदौर आगमन के बाद एक दूसरी बस्ती भी बनाई जिसे मल्हारगंज कहा जाता है। 1742 में राजवाड़ा का निर्माण प्रारंभ किया जो 1747 में पूरा हुआ। होलकरों ने इसके बाद मुख्यालय कंपेल से इंदौर स्थानांतरित कर लिया।
4 रावला के मंडलोई परिवार के पास अभिलेखों का एक बड़ा संग्रह है जो मंडलोई दफ्तर कहलाता है। इसमें अधिकांश अभिलेख फारसी में है। रत्नागिरी के शोधकर्ता आठले ने इस पर शोध कार्य किया है। ग्वालियर के भास्कर रामचंद्र भालेराव के पास भी इन अभिलेखों की प्रति और देवनागरी में अनुवाद भी है।
5 रावला मंडलोई परिवार के निवास को गढ़ी कहा जाता है। यह 18 वीं शती ईस्वी की चोकोर आकार की उंचे टीले पर बनी है। इसका प्रवेश द्वारा दो मंजिला मेहराबदार है। गढ़ी में बेसाल्ट पत्थर का इस्तेमाल किया गया है। इसके चारों कोनों पर बुर्ज सुरक्षा मोर्चे हैं। यह मंडलोई परिवार के निवास के लिए हुआ करता था जिसमें महल के साथ ही घुडसाल, हाथीखाने बगैरह बने हुए थे। महल के निर्माण में पाषाण के साथ लकड़ी ईंट व संगमरमर का उपयोग हुआ है।

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