भारत से शुरु हुई थी दुनिया में काल गणना

 अविनाश रावत
Avinash Rawat
        गुड़ी पड़वा पर 21 मार्च से विक्रम संवत्सर 2072 का शुभारंभ हो रहा है। दुनिया में काल गणना सबसे पहले भारत में शुरु हुई थी और इसी के आधार पर अंग्रेजी महीनों के नाम भी रखे गए हैं। अबसे सातवां महीना सितम्बर, नौवां महीना नबंवर और दसवां महीना दिसम्बर महज संयोग नहीं बल्कि हमारी काल गणना को दिखाता है। सम्राट आगस्तीन ने अपने जन्म माह का नाम अपने नाम पर आगस्त और भूतपूर्व महान सम्राट जुलियस के नाम पर जुलाई रख दिया। इसी तरह कुछ अन्य महीनों के नाम भी बदल दिए गए। फिर वर्ष की शरुआत ईसा मसीह के जन्म के 6 दिन बाद (जन्म छठी) से प्रारम्भ माना गया। लेकिन आज भी हिंदु नववर्ष की शुरुआत चेत्र मास से ही मानी जाती है। हिंदु पचांग के बारह महीनों के नाम आकाश मण्डल के नक्षत्रों में से 12 नक्षत्रों के नामों पर रखे गए हैं। जिस महीने में जो नक्षत्र आकाश में रात की शुरुआत से लेकर अंत तक दिखाई देता है या कह सकते हैं कि जिस मास की पूर्णमासी को चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी के नाम पर उस मास का नाम रखा गया है।
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आज से 2072 वर्ष पूर्व इसी प्रतिपदा के दिन उज्जयनी नरेश महाराज विक्रमादित्य ने विदेशी आक्रांत शकों से भारत-भू का रक्षण किया और इसी दिन से काल गणना प्रारंभ की। उपकृत राष्ट्र ने भी उन्हीं महाराज के नाम से विक्रमी संवत कह कर पुकारा। महाराज विक्रमादित्य ने आज से 2072 वर्ष पूर्व राष्ट्र को सुसंगठित कर शकों की शक्ति का उन्मूलन कर देश से भगा दिया और उनके ही मूल स्थान अरब में विजयश्री प्राप्त की। साथ ही यवन, हूण, तुषार, पारसिक तथा कंबोज देशों पर अपनी विजय ध्वजा फहराई। उसी के स्मृति स्वरूप यह प्रतिपदा संवत्सर के रूप में मनाई जाती थी और यह क्रम पृथ्वीराज चौहान के समय तक चला। महाराजा विक्रमादित्य ने भारत की ही नहीं, अपितु समस्त विश्व की सृष्टि की। सबसे प्राचीन कालगणना के आधार पर ही प्रतिपदा के दिन को विक्रमी संवत के रूप में अभिषिक्त किया। इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचंद्र के राज्याभिषेक अथवा रोहण के रूप में मनाया गया। यह दिन ही वास्तव में असत्य पर सत्य की विजय दिलाने वाला है। इसी दिन महाराज युधिष्टिर का भी राज्याभिषेक हुआ और महाराजा विक्रमादित्य ने भी शकों पर विजय के उत्सव के रूप में मनाया। आज भी यह दिन हमारे सामाजिक और धार्मिक कार्यों के अनुष्ठान की धुरी के रूप में तिथि बनाकर मान्यता प्राप्त कर चुका है। यह राष्ट्रीय स्वाभिमान और सांस्कृतिक धरोहर को बचाने वाला पुण्य दिवस है। हम प्रतिपदा से प्रारंभ कर नौ दिन में छह मास के लिए शक्ति संचय करते हैं, फिर अश्विन मास की नवरात्रि में शेष छह मास के लिए शक्ति संचय करते हैं।

दुनिया में सबसे पहले तारों, ग्रहों, नक्षत्रो आदि को समझने का सफल प्रयास भारत में ही हुआ था|पंडित लखन लाल शास्त्री के मुताबिक तारों, ग्रहों, नक्षत्रो, चांद, सूरज आदि की गति को समझने के बाद भारत के महान खगोल शास्त्रीयो ने भारतीय कलेंडर (विक्रम संवत) तैयार किया, इसके महत्व को उस
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समय सारी दुनिया ने समझा। लेकिन यह इतना अधिक व्यापक था कि आम आदमी इसे आसानी से नहीं समझ पाता था, खासकर पश्चिम के लोग इसे बिल्कुल नहीं समझ पाए। किसी भी विशेष दिन, त्यौहार आदि के बारे में जानकारी लेने के लिए विद्वान् (पंडित) के पास जाना पड़ता था। अलग-अलग देशों के सम्राट और खगोलशास्त्री भी अपने-अपने हिसाब से कैलेण्डर बनाने का प्रयास करते रहे। इसके प्रचलन में आने के 57 वर्ष के बाद सम्राट आगस्तीन के समय में पश्चिमी कैलेण्डर (ईस्वी सन) विकसित हुआ। लेकिन उसमें कुछ भी नया खोजने के बजाए, भारतीय कैलेंडर को लेकर सीधा और आसान बनाने का प्रयास किया था। पृथ्वी द्वारा 365/366 दिन में होने वाली सूर्य की परिक्रमा को वर्ष और इस अवधि में चंद्रमा द्वारा पृथ्वी के लगभग 12 चक्कर को आधार मान कर कैलेण्डर तैयार किया और क्रम संख्या के आधार पर उनके नाम रख दिए गए। पहला महीना मार्च (एकम्बर) से नया साल प्रारम्भ होना था। एकाम्बर ( 31 ), द्विआम्बर (30), त्रियाम्बर (31), चौथाम्बर (30), पंचाम्बर (31), षष्ठम्बर (30), सप्ताम्बर (31), अष्टाम्बर (30), नवाम्बर (31), दसाम्बर ( 30 ), ग्याराम्बर (31), बारम्बर (30/29), निर्धारित किया गया। सप्ताम्बर में सप्त अर्थात सात, अष्टाम्बर में में अष्ट अर्थात आठ, नबम्बर में नव अर्थात नौ, दसाम्बर में दस का उच्चारण महज इत्तेफाक नहीं है। बल्कि इन अंग्रेजी महीनों के नाम हमारी ही गणना के आधार पर रखे गए हैं। सम्राट आगस्तीन ने अपने जन्म माह का नाम अपने नाम पर अगस्त (षष्ठम्बर को बदलकर) और भूतपूर्व महान सम्राट जुलियस के नाम पर जुलाई (पंचाम्बर) रख दिया। इसी तरह कुछ अन्य महीनों के नाम भी बदल दिए गए। फिर वर्ष की शरुआत ईसा मसीह के जन्म के 6 दिन बाद (जन्म छठी) से प्रारम्भ माना गया। नाम भी बदल इस प्रकार कर दिए गए थे। जनवरी (31), फरवरी (30/29), मार्च (31), अप्रैल (30), मई (31), जून (30), जुलाई (31), अगस्त (30), सितम्बर (31), अक्टूबर (30), नवम्बर (31), दिसंबर ( 30) माना गया। फिर अचानक सम्राट आगस्तीन को ये लगा कि उसके नाम वाला महीना आगस्त छोटा (30 दिन) का हो गया है तो उसने जिद पकड़ ली कि उनके नाम वाला महीना 31 दिन का होना चाहिए। राजहठ को देखते हुए खगोल शास्त्रीयों ने जुलाई के बाद अगस्त को भी 31 दिन का कर दिया और उसके बाद वाले सप्ताम्बर (30), अक्तूबर (31), नबम्बर (30), दिसंबर ( 31) का कर दिया। एक दिन को समायोजित करने के लिए पहले से ही छोटे महीने फरवरी को और छोटा करके (28/29) कर दिया गया। बाद में इन बारह महीनों के नाम आकाश मण्डल के नक्षत्रों में से 12 नक्षत्रों के नामों पर रखे गए हैं। जिस महीने में जो नक्षत्र आकाश में रात की शुरुआत से लेकर अंत तक दिखाई देता है या कह सकते हैं कि जिस मास की पूर्णमासी को चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी के नाम पर उस मास का नाम रखा गया है। वर्ष के शुरुआती महीना का नाम चित्रा नक्षत्र के नाम पर चैत्र मास
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(मार्च-अप्रैल), विशाखा नक्षत्र के नाम पर वैशाख मास (अप्रैल-मई), ज्येष्ठा नक्षत्र के नाम पर ज्येष्ठ मास (मई-जून), आषाढ़ा नक्षत्र के नाम पर आषाढ़ मास (जून-जुलाई), श्रवण नक्षत्र के नाम पर श्रावण मास (जुलाई-अगस्त), भाद्रपद (भाद्रा) नक्षत्र के नाम पर भाद्रपद मास (अगस्त-सितम्बर), अश्विनी के नाम पर आश्विन मास (सितंबर-अक्टूबर), कृत्तिका के नाम पर कार्तिक मास (अक्टूबर-नवंबर), मृगशीर्ष के नाम पर मार्गशीर्ष (नवंबर-दिसंबर), पुष्य के नाम पर पौष (दिसंबर-जनवरी), मघा के नाम पर माघ (जनवरी-फरवरी) और फाल्गुनी नक्षत्र के नाम पर फाल्गुन मास (फरवरी-मार्च) का नामकरण हुआ है। आज भी हमारे देश में प्रकृति, शिक्षा तथा राजकीय कोष आदि के चालन-संचालन में मार्च, अप्रैल के रूप में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही देखते हैं। यह समय दो ऋतुओं का संधिकाल है। इसमें रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं। प्रकृति नया रूप धर लेती है। प्रतीत होता है कि प्रकृति नवपल्लव धारण कर नव संरचना के लिए ऊर्जस्वित होती है। मानव, पशु-पक्षी, यहां तक कि जड़-चेतन प्रकृति भी प्रमाद और आलस्य को त्याग सचेतन हो जाती है। बसंतोत्सव का भी यही आधार है। इसी समय बर्फ पिघलने लगती है। आमों पर बौर आने लगता है। प्रकृति की हरीतिमा नवजीवन का प्रतीक बनकर हमारे जीवन से जुड़ जाती है।
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प्रत्येक संवत्सर का एक विशेष नाम होता है। इस संवत्सर का नाम कीलक है, जिसका अर्थ पंडितों ने रहस्य माना है। कीलक नाम के इस नए संवत्सर का राजा शनि और मंत्री पद मंगल के पास रहने से भारत समेत कई देशों की न्याय व्यवस्था पहले से काफी मजबूत होगी। मंगल प्रशासनिक क्षेत्र में अनुशासन को बढ़ावा देगा। चंद्रमा के पास दुर्गेश (रक्षा) का पद रहेगा। इसके स्त्रीकारक ग्रह होने के कारण महिलाओं का वर्चस्व बढ़ेगा, सुरक्षा बढ़ेगी और कई महिलाओं को उच्च पद की प्राप्ति होगी। नया विक्रम संवत्सर 13 माह का होगा क्योंकि इस वर्ष दो अाषाढ़ मास रहेंगे। इनमें एक को अधिकमास (पुरुषोत्तम मास) कहा जाता है। चूंकि शनिदेव इस वर्ष के राजा हैं, इसलिए इस वर्ष न्याय प्रक्रिया से जुड़े कई रहस्यों के उजागर होने की संभावना है। वर्तमान में शनि, मंगल के अधिपत्य वाली वृश्चिक राशि में है। इसका यह प्रभाव होगा कि पुलिस, प्रशासन, सेना में न्याय तंत्र अनुशासन का पालन सख्ती से होगा। शुक्र चंद्रमा के प्रभावी पदों पर होने से सालभर लोगों का वैभव विलासिता के प्रति अधिक रुझान रहेगा और वर्षा की स्थिति संतोषजनक रहेगी। चंद्रमा के दुर्गेश के साथ ही धनेश होने से विदेशी व्यापार के लिए केंद्र सरकार सरल नीतियां लागू करेगी। कृषि उत्पादों, पेट्रोलियम दूरसंचार उपकरणों के क्षेत्र में भी विदेशी निवेश बढ़ेगा।
भारत का सर्वमान्य संवत विक्रम संवत है, जिसका प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है। ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही सृष्टि का प्रारंभ हुआ था और इसी दिन भारत वर्ष में काल गणना प्रारंभ हुई थी। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा या उगादि (युगादि) कहा जाता है।
इस दिन हिंदु नववर्ष का आरम्भ होता है। 'गुड़ी' का अर्थ 'विजय पताका' होता है। कहते हैं, शालिवाहन नामक एक कुम्हार-पुत्र ने मिट्टी के सैनिकों की सेना से प्रभावी शत्रुओं का पराभव किया। इस विजय के प्रतीक रूप में शालिवाहन शक का प्रारंभ इसी दिन से होता है।युगऔरआदिशब्दों की संधि से बना हैयुगादि इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसमें मुख्यतया ब्रह्माजी और उनके द्वारा निर्मित सृष्टि के प्रमुख देवी-देवताओं, यक्ष-राक्षस, गंधवारें, ऋषि-मुनियों, नदियों, पर्वतों, पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों का ही नहीं, रोगों और उनके उपचारों तक का भी पूजन किया जाता है। इसी दिन से नया संवत्सर शुंरू होता है। अत इस तिथि कोनवसंवत्सरभी कहते हैं। चैत्र ही एक ऐसा महीना है, जिसमें वृक्ष तथा लताएं पल्लवित पुष्पित होती हैं। शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है। जीवन का मुख्य आधार वनस्पतियों को सोमरस चंद्रमा ही प्रदान करता है। इसे औषधियों और वनस्पतियों का राजा कहा गया है। इसीलिए इस दिन को वर्षारंभ माना जाता है।

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