बेमिसाल थी होलकरों की टकसाल

अविनाश रावत
ऐतिहासिक टकसाल की मशीनों के इस तरह के कुछ ही अवशेष बाकी है।
   इंदौर के मल्हारगंज में बनी होलकरों की टकसाल बेमिसाल थी। इस टकसाल में होलकर राज्य के सिक्के ढाले जाते थे। सिक्के ढा़लने का काम इंग्लैंड से लायी मशीन से इतनी बारीकी और सफाई से किया जाता था कि यहां के ढ़ले सिक्कों की खनक अंग्रेजों की आंखों में भी खटकती थी। रानी अहिल्याबाई होलकर ने मालवा की राजधानी मल्हारनगर (महेश्वर) की टकसाल से रजत व तांबे के सिक्के (मुद्रा) ढलवाए। सिक्कों पर शिवलिंग व बेलपत्र को अंकित किया गया। इसके पीछे दो बड़े प्रमुख कारण थे। इनमें भगवान शिव को राजा बनाकर सेवक बनकर राज्य करना और अन्य हिंदू राजाओं को यह संदेश देना कि यह तो शिव का राज्य है और शिव के राज्य पर हमला करने का मतलब भगवान शिव पर आधिपत्य करना माना जाएगा। अहिल्याबाई ने अपने शासनकाल में दो तरह के सिक्के ढलवाए एक पर शिवलिंग और बेलपत्र और दूसरे पर भगवान मार्तण्ड का प्रतीक चिन्ह सूर्य को अंकित किया गया था। पहले वाले सिक्के मल्हार नगर से वर्ष 1780 में और दूसरे प्रकार के सिक्के इंदौर टकसाल से वर्ष 1784 में ढलना शुरू हुए। सूबेदार मल्हारराव के सिक्के चांदी के होते थे जो आज दुर्लभ हैं। इंदौर में होलकरी राज्य शासन शुरू होने से लेकर सन् 1948 में राज्य के मध्यभारत में विलीनीकरण तक होलकर शासकों की मुद्राएं इंदौर के प्राचीन परिक्षेत्र मल्हारगंज में ढाले जाते रहे हैं। मल्हारगंज की टकसाल बनाने के लिए तुकोजीराव द्वितीय के कार्यकाल में एक महत्वाकांक्षी योजना बनाई गई थी। इसके क्रियान्वयन के लिए एक दल इंग्लैंड भेजा गया था जिसके दो सदस्य थे बक्षी खुमान सिंह और राज वैद्य पृथ्वीनाथ रामचंद्र। मशीनों का आयात भी इंग्लैंड से ही किया गया था। सन्
1861 में ऐसी दिखती थी होलकरों की टकसाल
1861 में सर स्टीवंस नाम के एक अंग्रेज सज्जन की इंदौर के मल्हारगंज के टकसाल में ऊंचे वेतन पर नियुक्ति की गई थी ताकि मुद्राओं के ढालने की क्रिया सुचारु रूप से हो सके। इस सबके चलते होलकर के सिक्के गुणवत्ता की दृष्टि से इतने अच्छे बने थे कि भारत की अंग्रेज सरकार भी उनसे ईष्र्या करने लगी थी। यहां तक कि स्वयं वायसराय ने प्रयत्न करके इंदौर की टकसाल को बंद करवाने तक का बीड़ा उठा लिया था। होलकर की मुद्रा को हाली मुद्रा कहा जाता था जिसमें 100 के बदले 101 अंग्रेजी सिक्के देना पड़ते थे। फिरंगी नीति के कारण 1888 में सौ होलकर मुद्राएं 96 के बराबर रह गईं। इस टकसाल में बने सभी सिक्कों का कोषालय शिव विलास पैलेस के तलघर में स्थापित किया गया था जिसके प्रभारी थे रघुनाथ सिंह। मल्हारगंज में ढले सिक्कों पर मल्हार नगर अंकित होता था।
कड़ी मशक्कत के बाद मैं इस मशीन तक पहुंच पाया।

होलकरों के सिक्के ढ़ालने वाली इस टकसाल की मशीन काफी बड़ी है। जिसके कुछ पुर्जे जमीन पर लगे हुए थे और कुछ टकसाल की छत पर। सालों तक यह मशीन सुरक्षित रही क्योंकि टकसाल की जमीन राज्य परिवहन निगम के डिपो के लिए दी गई थी। डिपो रहने तक मशीन सही सलामत रही लेकिन डिपो बंद होने के बाद से इस मशीन के पुर्जे एक एक करके चोरी होने लगे। अब हालात यह है कि इस मशीन के सिर्फ कुछ बड़े पुर्जे ही बाकी रह गए हैं शेष सारी मशीन चोरी हो कर भंगार की दुकानों तक पहुंच गई।
मल्हारगंज स्थित यह ऐतिहासिक महत्व वाली टकसाल लापरवाही की भेंट चढ़ चुकी है अब इसकी मशीन भी खत्म होने की कगार पर पहुंच गयी है। सालों पुरानी इस मशीन के पुर्जे एक-एक करके लगातार चोरी हो रहे हैं। चार विभागों की आपसी खींचतान में सिक्के ढा़लने वाली ऐतिहासिक मशीन को संभालने के लिए चार विभाग लैटरबाजी में उलझे हुए हैं और चोर इस मशीन के पुर्जे भंगार में बेच रहे हैं। इंदौर की धरोहरों को संभालने के लिए एडीएम ने राज्य परिवहन और पुरातत्व विभाग को पत्र लिखकर मल्हारगंज स्थित टकसाल की मशीनों को राडवाड़ा में रखने के लिए कहा है। पुरातत्व विभाग ने इस मशीन को राजवाड़ा के बजाए संग्रहालय में रखने की अनुमित मांगी और उसका ऐस्टीमेट तैयार करने के बाद सारी अनुमतियां लेकर इस मशीन को कब्जे में लेंगे और डिस्प्ले करेंगे। तब तक इसकी सुरक्षा प्रशासन संभाले। यह मशीन अब भी राज्य परिवहन निगम के कब्जे में है। एडीएम ने राज्य परिवहन निगम को पत्र लिखा कि जब तक पुरातत्व विभाग इस मशीन को अपने कब्जे में नहीं ले लेता तब तक वह इसकी सुरक्षा करे लेकिन परिवहन निगम इसकी सुरक्षा का बजट न होने के हवाला दिया। दो दिन पहले भी एडीएम ने इसकी सुरक्षा करने के लिए पत्र एआईसीटीएल को पत्र लिखा है।






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