कई प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर


-बढ़ते प्रदूषण की वजह से इंसानों का जीवन तो मुश्किल होता ही जा रहा है, साथ में दूसरे जीवों के लिए भी खुद को बचाए रख पाना बेहद मुश्किल होता जा रहा है। हालत यह है कि दुनिया की कई प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गई हैं। भारत की भी कई प्रजातियां विलुप्त होने के मुहाने पर खड़ी हैं। वैश्विक स्तर पर इंटरनेशनल यूनियन फार कजर्वेशन आफ नेचर नाम की एक संस्था पर्यावरण से जुड़े विभिन्न मसलों पर काम करती है।
इस संस्था से जारी रपट में दुनिया की वैसी प्रजातियो के बारे में बताया गया है जो विलुप्त होने की कगार पर हैं। इस रपट में यह बताया गया है कि भारत की 687 प्रजातियां विलुप्त होने के खतरे को झेल रही हैं। इनमें विभिन्न जानवरों और पौधें की प्रजातियां हैं। बताते चलें कि 2008 में यह संख्या 659 थी। यानी एक साल के दौरान खतरे के दायरे में आने वाली प्रजातियों की संख्या में 28 का इजाफा हुआ है।
भारत में विलुप्त होने के कगार पर खड़ी प्रजातियों में जानवरों की 96 प्रजातियां हैं। वहीं ऐसे पक्षियों की प्रजातियों की संख्या 67 है। लुप्त होने के खतरे को झेल रही 46 प्रजातियां मछलियों की हैं। इसके अलावा पौधों की 217 प्रजातियां अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं। इसी से हालात की भयावहता का अंदाजा लगाया जा सकता है। पर इन्हें बचाने के लिए या विलुप्त होने की कगार पर खड़ी प्रजातियों की संख्या कम करने के लिए सरकारी स्तर पर कोई प्रयास नहीं हो रहा है। लापरवाही का आलम तो यह है कि विलुप्त हो रही प्रजातियों पर परिणामकारी चर्चा भी नहीं हो रही है। कुछ खास प्रजातियों पर मंडरा रहे खतरों पर कहीं-कहीं चर्चा जरूर होती है लेकिन जिस व्यापक फलक पर इस समस्या का सामना करने की जरूरत है, उसका स्पष्ट अभाव दिखता है।
भारत की जो 28 नई प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर खड़ी हैं, उनमें से 24 प्रजातियां मछलियों की है। इससे साफ है कि देश में जल प्रदूषण काफी तेज गति से बढ़ रहा है। दरअसल, देश में अभी भी शहरों में पैदा हो रहे कचरे और औद्योगिक कचरे के निस्तारण को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। इस तरह के कचरों के लिए सबसे आसान ठिकाना किसी नदी को बना दिया जाता है। इसका असर यह होता है कि वह नदी कुछ ही दिनों में नदी नहीं रहती है बल्कि नाले में तब्दील हो जाती है। गंगा और यमुना का उदाहरण सबके सामने है।
प्रजातियों का विलुप्त होना हमारे लिए खतरे की घंटी है। इसके नकारात्मक परिणाम दिखने शुरू हो गए हैं। दिनोंदिन इसके और भयानक परिणाम सामने आएंगे। प्रजातियों के विलुप्त होने का सीधा सा मतलब है, पारिस्थितिकी तंत्र का गड़बड़ हो जाना। क्योंकि ये प्रजातियां प्रकृति के एक पूरे चक्र का निर्माण करती हैं और यदि इस पूरे चक्र में से अगर कोई एक चीज भी खत्म होती है तो पूरा का पूरा चक्र बैठ जाएगा। बजाहिर, इसका खामियाजा सबको भुगतना होगा।

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