मूर्ख दिवस: जब अक्लमंद भी अपना दिमाग घर छोड़ आते हैं!

अगर आपको लगता है कि दुनिया में मूर्ख कम हो रहे हैं, तो 1 अप्रैल आते ही यह गलतफहमी दूर हो जाती है। इस दिन छोटे से लेकर बड़े तक, गरीब से लेकर अमीर तक, नेता से लेकर आम आदमी तक—सब मूर्ख बनने और बनाने की होड़ में जुट जाते हैं। असली मज़ा तब आता है जब सबसे ज्यादा अक्लमंद दिखने वाला इंसान भी किसी चालाकी भरे मज़ाक का शिकार बन जाता है और पूरे दिन अपनी बेइज्जती को स्माइल में छिपाने की कोशिश करता है!

मूर्ख दिवस: सदियों पुरानी परंपरा या सदाबहार बेवकूफी?
कहते हैं कि सदियों पहले कुछ भोले-भाले फ्रांसीसी लोग नए कैलेंडर के आने के बाद भी अप्रैल में नया साल मनाते रहे। बाकी लोगों ने उनका इतना मज़ाक उड़ाया कि धीरे-धीरे यह परंपरा बन गई। लेकिन हमें क्या फर्क पड़ता है फ्रांस में क्या हुआ था? हमारे यहां तो हर दिन कोई न कोई मूर्ख बनने को तैयार बैठा है—कोई लोन का आसान अप्रूवल देखकर फंस जाता है, कोई "कंगाल से करोड़पति बनें" वाले यूट्यूब वीडियो देखकर मोटिवेट हो जाता है, तो कोई "अगले महीने पेट्रोल ₹50 लीटर होगा" सुनकर सरकार की तारीफ करने लग जाता है!

कैसे जानें कि आज आप मूर्ख बन चुके हैं?
1. "भाई, तेरी लॉटरी लग गई!" – तुमने झूमकर नाचना शुरू कर दिया?
2. "तुम्हारी गाड़ी पंचर हो गई!" – जाकर झुकी नज़र से टायर चेक किया?
3. "तेरी जेब से ₹500 गिर गए!" – झुककर जमीन निहारने लगे?
अगर इनमें से कुछ भी किया है, तो आपको आधिकारिक रूप से मूर्ख दिवस की बधाई!

मूर्ख बनाने की मॉडर्न टेक्नोलॉजी
पहले लोग मूर्ख बनाने के लिए नकली चिट्ठियां भेजते थे, अब व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम पर “ब्रेकिंग न्यूज़” चला देते हैं।
"सभी सरकारी कर्मचारियों की सैलरी 50% बढ़ाई गई!" – पांच मिनट में 10 ग्रुप में फॉरवर्ड!
"आज रात से फेसबुक बंद हो रहा है!" – लोग अपने अकाउंट को अलविदा कहने की पोस्ट डालने लगते हैं।
"तुम्हारी गर्लफ्रेंड किसी और के साथ देखी गई!" – बेचारा सीधे कॉल कर बैठता है, और जवाब आता है, "अप्रैल फूल!"

मूर्ख दिवस और राजनीति: हर साल नया मज़ाक!
अब अगर आपको लगता है कि मूर्ख दिवस सिर्फ 1 अप्रैल को आता है, तो चुनावों का इंतजार कीजिए। वहां तो नेता इतने मज़ेदार वादे करते हैं कि मूर्ख दिवस भी शरमा जाए!
"हम बेरोजगारी खत्म करेंगे!" – और अगले दिन सरकारी दफ्तर में ताला लग जाता है।
"महंगाई कम होगी!" – और अगले हफ्ते पेट्रोल के दाम फिर बढ़ जाते हैं।
"भ्रष्टाचार खत्म होगा!" – और पांच साल बाद वही नेता किसी नए घोटाले में फंस जाता है।
मतलब, मूर्ख दिवस साल में एक बार आता है, लेकिन जनता हर पांच साल में मुफ्त का मूर्ख दिवस सेलिब्रेट करती है!

सीख: मूर्ख बनिए, मगर मज़े में!
देखिए, मूर्ख दिवस हमें यह सिखाता है कि ज़िंदगी में हंसी-मज़ाक बहुत ज़रूरी है। लेकिन ध्यान रहे, मज़ाक ऐसा हो जिससे दोस्ती और मजबूत हो, न कि रिश्ते टूट जाएं। और सबसे बड़ी सीख—एक दिन मूर्ख बनना ठीक है, लेकिन रोज़ बनना समझदारी नहीं!
तो दोस्तों, तैयार रहिए… अगला मूर्ख दिवस बस 365 दिन दूर है!

अविनाश रावत
वरिष्ठ पत्रकार, हाईकोर्ट अधिवक्ता



Comments

Popular posts from this blog

बिस्किट, चिप्स और चॉकलेट में एनीमल फेट

मर्यादा पुरूषोत्तम राम की वह विस्मृत बहन !

कल्पनाओं को मूर्त रूप देता है कल्पवृक्ष