"मुत्रोत्सव" और बॉलीवुड की बौद्धिक पेशाबगाह
अविनाश रावत, वरिष्ठ (ब्राह्मण) पत्रकार
बॉलीवुड में इन दिनों मूत्रमार्ग से विचारधारा बहाने का नया चलन है। ताज़ा नमूना पेश किया है अनुराग कश्यप ने, जिसकी फिल्में अक्सर दर्शकों को ऐसा महसूस कराती हैं जैसे सिनेमा हॉल में घुसते ही उन्होंने गलती से गटर खोल दिया हो।
इस बार उसने कहा—"मैं ब्राह्मणों पर मूतूंगा।" वाह अनुराग। तुम्हारी फिल्मों की तरह ही तुम्हारी ज़ुबान भी अब दर्शकों की सहनशक्ति का इम्तहान ले रही है। पर क्या करें?
जब सिनेमा में कहने को कुछ बचा न हो, और दिमाग की हार्ड डिस्क फॉर्मेट हो चुकी हो, तो गाली, अपमान और घृणा ही "सृजनात्मकता" बन जाती है। अनुराग समेत समूचे बॉलीवुड का सच यही है। कभी धर्म को गाली, कभी सेना को नीचा दिखाओ, कभी साधुओं को व्यंग्य का पात्र बनाओ, कभी राम को काल्पनिक बताओ, और फिर गंगा जल से पुरस्कार धोकर कहो—"हम प्रगतिशील हैं।" इनकी प्रगतिशीलता का पैमाना वही है—जो जितना ज्यादा भारतीयता से नफरत करे, उतना बड़ा "सोचने वाला कलाकार" कहलाता है।
अब बात करते हैं ब्राह्मणों की, जिन पर ये मूत्र-वाणी चलाते हैं। जब चाणक्य ने अखंड भारत की नींव रखी थी, तब आपके पूर्वज शायद अफीम की खेती में व्यस्त रहे होंगे। जब चंद्रशेखर आज़ाद ने आज़ादी के लिए जान दी, तब आपके बौद्धिक पुरखे "ब्रिटिश फिल्म ग्रांट" का फॉर्म भर रहे होंगे। जब परमवीर चक्र विजेता मनोज पांडे कारगिल में दुश्मनों को धूल चटा रहे थे, तब आपके जैसे "क्रांतिकारी फिल्मकार" सिगरेट के धुएं में लोकतंत्र की परिभाषा खोज रहे होंगे। ये ब्राह्मण कोई जाति नहीं, वो चेतना है—जो पूजा भी जानती है और युद्ध भी। बॉलीवुड को अब "क्रिएटिव फूड पॉइजनिंग" से उबरने की ज़रूरत है।
हर फिल्म में हिन्दू प्रतीकों की टुच्ची खिल्ली उड़ाकर आप न प्रगतिशील बनते हैं, न विद्रोही। आप बस वही साबित करते हैं जो जनता पहले से जानती है। अनुराग तुम्हारी मानसिकता एक वीएफएक्स से ज़्यादा नकली है।
अनुराग कश्यप जैसे लोगों को अब चाहिए कि वे एक फिल्म बनाएं "शौचालय एक संवेदना", जिसमें वो अपनी पूरी सोच को टंकी में बंद करके फ्लश कर सकें। क्योंकि देश को अब वाकई सफाई की ज़रूरत है। बोलचाल की भी, सिनेमा की भी, और सोच की भी।
अगर आप भी इन बौद्धिक नौटंकियों से परेशान हैं, तो एक ब्राह्मण पत्रकार की ये पोस्ट शेयर करें और बॉलीवुड को याद दिलाएं—"संस्कृति कोई सेट नहीं होती, जिसे जला दो।
और हां... मेरे बारे में जानना हो तो इतना ही जान लो कि
परशुराम का वंशज हूं मैं, क्रोध उन्हीं के जैसा है। कलम के ऊपर फरसा है, हर वार उन्हीं के जैसा है।
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