खाने के बाद अब चम्मच भी खाइए

- ज्वार के आटे से बन रही खाने योग्य कटलरी
- स्वादिष्ट भी है ओवन में बनी चम्मच
अविनाश रावत-
चम्मच का इस्तेमाल खाने के लिए करने के साथ अब उसे खाया भी जा सकता है। हैदराबाद स्थित बी के एनवायरनमेंटल इनोवेशन प्राइवेट लिमिटेड ने इस अवधारणा को वास्तविकता में बदला है। यूज एंड ईट कल्टर, ज्वार के न्यूट्रीशन और खेती को बढ़ावा देने के साथ ही प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करने और पर्यावरण के लिहाज से हानिकारक प्लास्टिक और लकड़ी की कटलरी (चम्मच, कांटे, छुरी और चीनी कांटा) के विकल्प के रूप में आटा, ज्वार, गेहूं और चावल आदि के मिश्रण से तैयार की गई कटलरी का निर्माण किया है। प्लास्टिक की कटलरी की विकास दर 30 फीसदी के हिसाब से बढ़ रही है। इससे नॉन-बॉयोडीग्रेडेबल अपशिष्ट को बढ़ावा मिल रहा है। इस तरह की समस्या से लड़ने के लिए खाने योग्य कटलरी ही एकमात्र विकल्प और समाधान है। इससे डिस्पोजेबल कांटे, चम्मच, चॉपस्टिक और चाकू की सुविधा के साथ ही ज्वार व अन्य अनाजों की घरेलू खपत भी बढ़ने के साथ ही किसानों को फायदा हो रहा है।
इस तरह बन रही है खाने वाली चम्मच
गौरतलब है कि ज्वार चावल से चार गुना ज्यादा पौष्टिक होता है साथ ही इसकी खेती में चावल की अपेक्षा पानी भी कम लगता है। लेकिन लोगों ने ज्वार के बजाए चावल की ज्यादा खेती शुरू कर दी है। ज्वार की खेती में कमी आयी है वही चावल की खेती कई गुना बढ़ी है। कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग के जरिए ज्वार की अच्छी खेती को फिर से बढ़ावा दिया जा सकता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए इंटरनेशनल क्रॉप रिसर्च इंस्टीटयूट फॉर सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स से इस्तीफा देने के बाद पीसापती नारायण खाने योग्य कटलरी (चम्मच) बनाने  के काम में जुट गए। इस अनुसंधान एवं विकास के लिए उन्होंने करीब 70 लाख रुपये खर्च किए और ऐेसी चम्मच बनाई जिससे खाना खाने के बाद उस चम्मच को भी खाया जा सके। इसे बनाने में न तो किसी तरह के केमीकल का इस्तेमाल किया गया और न ही कोई अार्टीफिशियल चीजें मिलाई गई। विशुद्ध तौर पर ज्वार व अन्य अनाजों के आटे से इसका निर्माण किया गया है। गौरतलब है कि ज्यादातर अनाजों में 14 से 16 प्रतिशत तक नमी होती है। आटे से खाने योग्य कटलरी बनाने के इस नमी को ओवन में पकाकर 1.7 प्रतिशत तक लाया जाता है। साथ ही इसे टेस्टी के साथ ज्यादा पौष्टिक बनाने के लिए अजवाइन, जीरा और रॉक सॉल्ट भी मिलाया जाता है। कटलरी को ओवन में पकाकर इतना हार्ड बनाया जाता है कि उससे गर्म सूप या अन्य कोई गर्म चीजें खाने में वह टूटती नहीं है। लेकिन जब कटलरी खायी जाती है तो उसे चबाने में भी मजा आता है। 
मध्यप्रदेश में जल्द शुरू हो जाएगी सप्लाई
आईटीसी वेलकम होटल समूह और रॉयल जेट खाने योग्य चम्मचों का इस्तेमाल कर रही है वहीं ताज होटल इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए विचार कर रहा है। बी के एनवायरनमेंटल के प्रबंध निदेशक नारायण पीसपति देश के अलग अलग राज्यों में बिजनेस की संभावनाएं तलाश रहे हैं। छत्तीसगढ़ में इसकी सप्लाई शुरू हो गई है और मध्यप्रदेश में इसकी तैयारी है। पीसापति इस प्रोजेक्ट को बढ़ाने के लिए अब ऐसी टेक्नोलॉजी भी तलाश रहे हैं जिससे एक लाख से ज्यादा कटलरी रोज बनाई जा सकें।
एक हजार करोड़ की प्लास्टिक कटलरी खपत भारत में
भारत में प्लास्टिक कटलरी की बिक्री प्रति वर्ष 50 अरब यूनिट है। जिनकी कीमत करीब 1,000 करोड़ रुपये होती है। हालांकि अमेरिका में यही ग्राफ 200 अरब यूनिट (20,000 करोड़ रुपये) है। जापान में हर साल 24 अरब चॉपस्टिकों का निपटारा किया जाता है। वहीं चीन में 35 अरब चॉपस्टिक इस्तेमाल में लाया जाता है और बाद भी फेंक दिया जाता है।
खाने वाली चम्मच से बढ़ेगी ज्वार की खेती
पीसापती नारायण- एमडी बी के एनवारमेंटल हैदराबाद
ज्वार में कई तरह के पौष्टिक पदार्थ होते हैं। इसके बावजूद इसकी खेती में कमी आयी है। वही प्लास्टिक की कटलरी के इस्तेमाल से पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। इन्हीं दो बातों को ध्यान में रखते हुए मैंने ज्वार के आटे से खाने योग्य कटलरी बनाई है। इसके लिए ज्वार की खेती करने वाले किसानों से अनुबंध किया है। कई राज्यों से खाने योग्य कटलरी की खासी मांग है। हम उन्हें सप्लाई भी कर रहे हैं। मध्यप्रदेश में इसकी सप्लाई बडे स्तर पर करने के लिए हमारी बात चल रही है।

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