स्वच्छता के हर पैमाने पर फेल हुआ दमोह

दमोह मध्यप्रदेश में बुंदेलखंड अंचल का एक शहर और सागर संभाग का एक जिला। बडे भाई की ससुराल यहीं है। साथ ही मेरा सबसे अच्छा दोस्त भी इसी शहर की पैदाइश है। 50 अन्य दोस्त भी यहीं के हैं। जाहिर सी बात है इस शहर से मेरा दिल का रिश्ता है। हाल ही में सरकार ने देश के 31 राज्यों व केन्द्रशासित प्रदेशों के 476 शहरों का सर्वे कराया जिनमें दमोह को सबसे गंदा शहर घोषित किया गया है। खुले में शौच, सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट, वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट, पानी की क्वालिटी और पानी से होने वाली बीमारियों से मौतों के आंकड़ों का अध्ययन कर तैयार की गई इस रिपोर्ट में दमोह हर पैमाने पर फेल है। 
       पौराणिक कथाओं के राजा नल की पत्नी दमयंती के नाम पर ही इसका नाम दमोह पड़ा। अकबर के साम्राज्य में यह मालवा सूबे का हिस्सा रहा। यहां के अधिकतर प्राचीन मंदिरों को मुग़लों ने नष्ट कर इनकी सामग्री एक क़िले के निर्माण में प्रयुक्त की । 14 वीं सदी में मुसलमानों के प्रभाव से दमोह का महत्त्व बढ़ा और यह मराठा प्रशासकों का केन्द्र भी रहा। ऐतिहासिक नगर दमोह के आस-पास का इलाका पुरातत्त्व की दृष्टि से समृद्ध है। आसपास कई प्राचीन व धार्मिक स्थल हैं। यहां पाषाण काल के अनेक उपकरण मिले हैं जो सिद्ध करते हैं कि प्रारंभिक मानव सभ्यता यहां फली-फूली थी। पांचवी शताब्दी में यहां पाटलीपुत्र के गुप्त शासकों का शा था। समुद्रगुप्त, चंद्रगुप्त और स्कंदगुप्त ने इस क्षेत्र में अनेक स्मारकों का निर्माण कराया। 8वीं से 12वीं शताब्दी तक दमोह के कुछ हिस्सों पर कलचुरी शासकों का भी नियंत्रण रहा। 14 वीं शताब्दी में खिलजी ने क्षेत्रीय प्रशासनिक केंद्र को चंदेरी के बटियागढ़ से दमोवा (दमोह) स्थानातंरित किया। दमोह मराठा गर्वनर की सीट थी। ब्रिटिश काल के बाद यह मध्य प्रांत का भाग हो गया। 1861 में इसे जिला बनाया गया। 1867 में जबलपुर और इलाहाबाद के बीच रेलवे लाइन पूरी होने के बाद 1898 में दमोह कटनी को भी रेल मार्ग से जोड़ा गया।
बांदकपुर के प्रसिद्ध शिव मंदिर सहित यहां नोहलेश्वर, गिरी दर्शन, सिंगौरगढ़ का किला, निदानकुंड, कुंडलपुर लक्ष्मण कुटी, सद्भभावन शिखर सहित कई पर्यटन स्थल हैं। यहां शिव, पार्वती एवं विष्णु की मूर्तियों सहित कई प्राचीन प्रतिमाएँ हैं। दमोह में दो पुरानी मस्जिदें, कई घाट और जलाशय हैं। यहां आयल मिल, हैण्डलूम, धातु के बर्तन, बीडी-सिगरेट, सीमेंट फैक्टरी, सोने-चांदी के जेवर बनाने सहित कई तरह के व्यवसाय हैं। आसपास बड़ी संख्या में पान के बाग भी है। यहां पर पशु बाजार लगता है तथा कई छोटे उद्योग भी है। चारों ओर पहाड़ियों (भाऩरेर ऋणी) तथा जंगल से घिरा हुआ है। जिले की अधिकांश भूमि उपजाऊ है। सुनार और बैरमा नदियां प्राणवाहिनी बनकर बहती हैं।
7306 वर्गकिलोमीर में फैले इस शहर ने 1896 में सूखा और 1900 में आंशिक अकाल भी देखा। 1933 में गांधी भी यहां आए। लेकिन अब इस शहर के माथे पर देश का सबसे गंदा शहर होने का कलंक लग गया है। पता नहीं कब यह कलंक धुल पाएगा। 1989 से संसदीय सीट पर भाजपा का कब्जा है। वर्तमान सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री यहां के कई बार जीते। पूर्व मंत्री मुकेश नायक का घर भी दमोह में है। शहर ने इनके सम्मान में एक पूरी कॉलोनी ही इनके नाम पर की है ‘मुकेश नायक कॉलोनी’। 2003 से प्रदेश सरकार में मंत्री पद पर काबिज जयंत मलैया भी यहीं से हैं। उन्हें प्रदेश सरकार में वित्त, वाणिज्यिककर और जल संसाधन जैसे दमदार विभाग मिले हैं। सात बार से विधायक हैं। पिता उद्योग पति रहे। तेल की मिल थी। जयंत मलैया जबलपुर में रहते थे। राजनीति शुरू की तो दमोह का रुख किया। ऐसे ही कई दिग्गजों के लिए दमोह राजनीतिक लांच पैड ही रहा। कामयाबी की ऊंची उड़ानें कई नेताओं ने भरीं। यहीं दमोह के माई-बाप हैं। मगर दमोह की दर्दनाक और शर्मनाक तस्वीर इस सर्वे से देश के सामने आई। जाहिर सी बात है दमोह की जनता को इन माई-बाप का घनघोर तरीके के बहिष्कार करना चाहिए। सड़कों पर पसरा कचरा इन नेताओं के घरों के सामने पहुंचाना चाहिए। दमोह जिनके वर्षों से पग पखारता आ रहा है वे नेता दमोह के विकास का श्रेय लेने आगे आते हैं तो इस नए कलंक का कारण भी इन्हे ही माना जाना चाहिए।

Comments

Popular posts from this blog

बिस्किट, चिप्स और चॉकलेट में एनीमल फेट

मर्यादा पुरूषोत्तम राम की वह विस्मृत बहन !

कल्पनाओं को मूर्त रूप देता है कल्पवृक्ष