मूर्ख दिवस से जुड़े है कई रोचक तथ्य


1 अप्रैल को दुनियाभर में अप्रैल फ़ूल यानि ‘मूर्ख दिवस’ के तौर पर हंसी-मजाक के साथ एक-दूसरे को मूर्ख बनाते हुए मनाया जाता है। पूरी दुनिया में अप्रैल-फ़ूल का प्रचलन बढ़ गया है। हर कोई एक दिन पहले से ही तैयारी करने लगता है कि किसे-किसे मूर्ख बनाना है, और कैसे बनाना है। लेकिन बहुत कम लोगों को ही पता होगा कि मूर्ख दिवस मनाया क्यों जाता है। अपने इस लेख के माध्यम से मैं अप्रैल फूल (मूर्ख दिवस) से जुड़े कुछ तथ्य बता रहा हूं। यह तथ्य मूर्ख बनाने वाले नहीं बल्कि मूर्ख दिवस मनाए जाने से जुड़े हैं और वास्तविक हैं। असल में  ‘ऑल फ़ूल्स डे' के रूप में जाना जाने वाला यह दिन, 1 अप्रैल एक आधिकारिक छुट्टी का दिन नहीं है, लेकिन इसे व्यापक रूप से एक ऐसे दिन के रूप में जाना और मनाया जाता है, जब एक दूसरे के साथ व्यावाहारिक मजाक और सामान्य तौर पर मूर्खतापूर्ण हरकतें की जाती हैं। यह दिन मूर्ख बनकर या मूर्ख बनाकर भी मन को सुख देता है। यही अनूठा भाव ही इसकी लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण है। मूर्ख बनने या बनाने का अर्थ ठगने या ठगाने से नहीं है, बल्कि इसका संबंध थोडा-सा सुख और आनंद पाने की उन मानवीय भावनाओं से है, जिसके लिए हर व्यक्ति जीवन में दिन-रात जूझता है।


मूर्ख दिवस मनाए जाने को लेकर कई तरह की कथाएं प्रचलित हैं। बहुत पहले यूनान में मोक्सर नामक एक मजाकिया राजा था। एक दिन उसने स्वप्न में देखा कि किसी चींटी ने उसे जिंदा निगल लिया है। सुबह उसकी नींद टूटी तो स्वप्न ताजा हो गया। स्वप्न की बात पर वह जोर-जोर से हंसने लगा। रानी ने हंसने का कारण पूछा तो उसने बताया- ‘रात मैंने सपने में देखा कि एक चींटी ने मुझे ज़िन्दा निगल लिया है। सुन कर रानी भी हंसने लगी। तभी एक ज्योतिष ने आकर कहा, महाराज इस स्वप्न का अर्थ है- आज का दिन आप हंसी-मजाक व ठिठोली के साथ व्यतीत करें। उस दिन अप्रैल महीने की पहली तारीख थी। बस तब से लगातार एक हंसी-मजाक भरा दिन हर वर्ष मनाया जाने लगा।
एक अन्य लोक कथा के अनुसार एक अप्सरा ने किसान से दोस्ती की और कहा- यदि तुम एक मटकी भर पानी एक ही सांस में पी जाओगे तो मैं तुम्हें वरदान दूंगी। मेहनतकश किसान ने तुरंत पानी से भरा मटका उठाया और पी गया। जब उसने वरदान वाली बात दोहराई तो अप्सरा बोली- ‘तुम बहुत भोल-भाले हो, आज से तुम्हें मैं यह वरदान देती हूं कि तुम अपनी चुटीली बातों द्वारा लोगों के बीच खूब हंसी-मजाक करोगे। अप्सरा का वरदान पाकर किसान ने लोगों को बहुत हंसाया, हंसने-हंसाने के कारण ही एक हंसी का पर्व जन्मा, जिसे हम मूर्ख दिवस के नाम से पुकारते हैं।
बहुत पहले चीन में सनन्ती नामक एक संत थे, जिनकी दाढ़ी ज़मीन तक लम्बी थी। एक दिन उनकी दाढ़ी में अचानक अाग लग गई तो वे बचाओ-बचाओ कह कर उछलने लगे। उन्हें इस तरह उछलते देख कर बच्चे जोर-जोर से हंसने लगे। तभी संत ने कहा, मैं तो मर रहा हूं, लेकिन तुम आज के ही दिन खूब हंसोगे, इतना कह कर उन्होंने प्राण त्याग दिए।
स्पेन के राजा माउन्टो बेर थे। एक दिन उन्होंने घोषणा कराई कि जो सबसे सच्च झूठ लिख कर लाएगा, उसे ईनाम दिया जाएगा। प्रतियोगिता के दिन राजा के पास ‘सच्च झूठ’ के हजारों खत पहुंचे, लेकिन राजा किसी के खत से संतुष्ट नहीं थे, अंत में एक लड़की ने आकर कहा ‘महाराज मैं गूंगी और अंधी हूं’। सुन कर राजा चकराया और पूछा ‘क्या सबूत है कि तुम सचमुच अंधी हो, तब तेज-तर्राट किशोरी बोली महल के सामने जो पेड़ लगा है, वह आपको तो दिखाई दे रहा है, लेकिन मुझे नहीं।’ इस बात पर राजा खूब हंसा। उसने किशोरी के झूठे परिहास का ईनाम दिया और प्रजा के बीच घोषणा करवाई कि अब हम हर वर्ष पहली अप्रैल को मूर्ख दिवस का दिन मनाएंगे। तब से आज तक यह परम्परा चली आ रही है।
ईसा पूर्व एथेंस नगर में चार मित्र रहते थे। इनमें से एक अपने को बहुत बुद्धिमान समझता था और दूसरों को नीचा दिखाने में उसको बहुत मजा आता था। एक बार तीनों मित्रों ने मिल कर एक चाल सोची और उस से कहा कि कल रात में एक अनोखा सपना दिखायी दिया। सपने में हमने देखा कि एक देवी हमारे समाने खड़ी होकर कह रही है कि कल रात पहाड़ी की चोटी पर एक दिव्य ज्योति प्रकट होगी और मनचाहा वरदान देगी, इसलिए तुम अपने सभी मित्रों के साथ वहाँ ज़रूर आना। अपने को बुद्धिमान समझने वाले उस मित्र ने उनकी बात पर विश्वास कर लिया। निश्चित समय पर पहाड़ की चोटी पर पहुँच गया साथ ही कुछ और लोग भी उसके साथ यह तमाशा देखने के लिए पहुँच गए। और जिन्होंने यह बात बताई थी वह छिप कर सब तमाशा देख रहे थे। धीरे धीरे भीड़ बढऩे लगी और रात भी आकाश में चंद्रमा और तारे चमकने लगे पर उस दिव्य ज्योति के कहीं दर्शन नहीं हुए और न ही उनका कहीं नामों निशान दिखा। कहते हैं उस दिन 1 अप्रैल था बस फिर तो एथेंस में हर वर्ष मूर्ख बनाने की प्रथा चल पड़ी बाद में धीरे धीरे दूसरे देशों ने भी इसको अपना लिया और अपने जानने वाले चिर -परिचितों को 1 अप्रैल को मूर्ख बनाने लगे। इस तरह मूर्ख दिवस का जन्म हुआ।
कहावत है कि एक बार हास्य प्रेमी भारतेंदु हरिश्चंद्र ने बनारस में ढिंढोरा पिटवा दिया कि अमुक वैज्ञानिक अमुक समय पर चंद्रमा और सूरज को धरती पर उतार कर दिखायेंगे। नियत समय पर लोगों की भीड़ इस अद्भुत करिश्मे को देखने को जमा हो गई। घंटों लोग इंतज़ार में बैठे रहे परन्तु वहाँ कोई वैज्ञानिक नहीं दिखायी दिया उस दिन 1 अप्रैल था, लोग मूर्ख बन के वापस आ गए। 
 पारंपरिक तौर पर न्यूजीलैंड, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका जैसे कुछ देशों में इस तरह के मजाक केवल दोपहर तक ही किये जाते हैं। अगर कोई दोपहर के बाद किसी तरह की कोशिश करता है तो उसे "अप्रैल फ़ूल" कहा जाता है। ऐसा इसीलिये किया जाता है क्योंकि ब्रिटेन के अखबार जो अप्रैल फ़ूल पर मुख्य पृष्ठ निकालते हैं वे ऐसा सिर्फ पहले (सुबह के) एडिशन के लिए ही करते हैं। इसके अलावा फ्रांस, आयरलैंड, इटली, दक्षिण कोरिया,जापान, रुस, नीदरलैंड, जर्मनी, ब्राजील, कनाडा और अमेरिका में जोक्स का सिलसिला दिन भर चलता रहता है। 1 अप्रैल और मूर्खता के बीच सबसे पहला दर्ज किया गया संबंध चॉसर के कैंटरबरी टेल्स (1392) में पाया जाता है। ब्रिटिश लेखक चौसर की किताब 'द कैंटरबरी टेल्स' में कैंटरबरी नाम के एक कस्बे का ज़िक्र है। इसमें इंग्लैंड के राजा रिचर्ड द्वितीय और बोहेमिया की रानी एनी की सगाई की तारीख 32 मार्च 1381 को होने की घोषणा की जाती है, जिसे कस्बे के लोग सही मानकर मूर्ख बन जाते हैं। तभी से एक अप्रैल को मूर्ख दिवस मनाया जाता है।
बहुत से लोगो का मानना है की अप्रैल फ़ूल की शुरुआत 17वीं सदी से हुई, परन्तु पहली अप्रैल को “फ़ूल्स डे” के रूप मे माना जाना और लोगो लोगों के साथ हंसी मज्ज़ाक करने का सिलसिला सन् 1564 के बाद फ़्रांस से शुरू हुआ। इस परंपरा की शुरुआत की कहानी बड़ी ही मनोरंजक है। 1564 से पहले यूरोप के लगभग सभी देशों मे एक जैसा कैलेंडर प्रचलित था, जिसमे हर नया वर्ष पहली अप्रैल से शुरू होता था। उन दिनों पहली अप्रैल के दिन को लोग नववर्ष के प्रथम दिन की तरह ठीक इसी प्रकार मनाते थे, जैसे आज हम पहली जनवरी को मनाते हैं। इस दिन लोग एक-दूसरे को नववर्ष के उपहार देते थे, शुभ-कामनाएँ भेजते थे और एक दूसरे के घर मिलने को जाया करते थे। सन् 1564 मे वहाँ के राजा चार्ल्स नवम ने एक बेहतर कैलेंडर को अपनाने का आदेश दिया। इस नए कैलेंडर मे आज की तरह 1 जनवरी को वर्ष का प्रथम दिन माना गया था। ज्यादातर लोगो ने इस नए कैलेंडर को अपना लिया, लेकिन कुछ ऐसे भी लोग थे, जिन्होंने नए कैलेंडर को अपनाने से इंकार कर दिया था। वह पहली जनवरी को वर्ष का नया दिन न मानकर पहली अप्रैल को ही वर्ष का पहला दिन मानते थे। ऐसे लोगो को मूर्ख समझकर नया कैलेंडर अपनाने वालो ने पहली अप्रैल के दिन विचित्र प्रकार के मजाक और झूठे उपहार देने शुरू कर दिए और तभी से आज तक पहली अप्रैल को लोग 'फ़ूल्स डे' के रूप मे मनाते हैं। आज के लोग इन पुरानी बैटन को तो भूल गए हैं, लेकिन पहली अप्रैल को फ़ूल्स डे मनाना अभी तक नहीं भूले हैं। ये अब एक तरह से हर वर्ष आने वाले त्योहारों की ही तरह हमारे जीवन मे शामिल हो गया है।
   रोम, मध्य यूरोप और हिन्दू समुदाय में 20 मार्च से लेकर 5 अप्रैल तक नया साल मनाया जाता है। इस दौरान ‘वसंत ऋतु’ होती है। जूनियल कैलेंडर ने 1 अप्रैल से नया साल माना, जो कि सन् 1582 तक मनाया गया। इसके बाद पोप ग्रेगी 13वें ने ग्रेगियन कैलेंडर बनाया। इसके अनुसार 1 जनवरी को नया साल घोषित किया गया। कई देशों ने सन् 1660 में ग्रेगीयन कैलेंडर स्वीकार कर लिया। जर्मनी, दनिश और नार्वे में सन् 1700 और इंग्लैंड में 1759 में एक जनवरी को नए साल के रूप में स्वीकार किया गया। फ़्रांस के लोगों को लगा की साल का पहला दिन बदलकर उन्हें मूर्ख बनाया गया है और पुराने कैलेंडर के नववर्ष को उन्होंने मूर्ख दिवस घोषित कर दिया।
दुनिया भर के अखबार और टीवी चैनलों ने पहली अप्रैल को कोई न कोई ऐसी खबर प्रकाशित या प्रसारित कर अपने पाठकों व दर्शकों को मूर्ख बनाया है, जिससे रोमांच और हंसी-खुशी का माहौल कायम हुआ है। साथ ही दोस्त और रिश्तेदार भी इस दिन अपने जानने वालों को मूर्ख बनाने का प्रयास करते हैं। ऐसे में मूर्ख दिवस के दिन आप भी जरा सावधान रहें। कहीं ऐसा न हो कि सुबह उठते ही कोई दोस्त सबसे पहले आपको ही अप्रैल फूल बना दे। 1962 में स्वीडन में एक ही टीवी चैनल था। वो ब्लैक एंड व्हाइट कार्यक्रम प्रसारित करता था। पहली अप्रैल को एनाउंसर ने कहा कि नई टेक्नोलाजी का कमाल देखिए, अपने नाइलोन के मोजे को स्क्रीन पर रगडि़ए और आपका टीवी कलर हो जाएगा। हजारों लोगों ने उसकी बात पर विश्वास कर लिया, लेकिन बाद में बताया गया कि आज पहली अप्रैल है। इसी तरह वर्जिन एयरलाइंस के मालिक रिचर्ड ब्रैंसन ने एक खबर दी कि धरती के केंद्र में जाने की तैयारी कर चुके हैं और वे अपने साथ अभिनेता टॉम हैंक्स को ले जा रहे हैं। इसके लिए एक विशेष विमान भी तैयार कर लिया गया है। ये विमान धरती को ड्रिल करता हुआ ब्रैंसन को एक ज्वालामुखी के जरिए धरती के केंद्र तक ले जाएगा। बाद में पता चला कि ये अप्रैल फूल जोक था जिसे खुद रिचर्ड ब्रैंसन ने फैलाया था। वर्ष 2008 में पहली अप्रैल को बीबीसी ने समाचार दिया कि उसकी कैमरा टीम ने अपनी नेचुरल हिस्ट्री सीरिज मिराकिल आफ  इवाल्यूशन के लिए हवा में उड़ती पेंगुइन को कैमरे में कैद किया है। इसकी बाकायदा वीडियो भी दिखाई गई। ये सबसे ज्यादा हिट पाने वाली वीडियो साबित हुई। बताया गया कि ये पेंगुइन हजारों मील दूर उडक़र दक्षिण अमेरिका के वर्षा वाले जंगलों में जा रही है, जहां ये सर्दी के मौसम तक रहेंगी। 


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