चप्पल की तलाश

SONU PANDIT
कब पूरी होगी इनकी 
आरामदायक चप्पल की खोज 

बरसों गुजर गये. हजारों बार लड़कियों  को चप्पलों की दुकान पर सिर्फ इसलिए जाते देखा है कि उन्हें  एक कमफर्टेबल चप्पल चाहिये रोजमर्रा के काम पर जाने के लिए!
हर बार चप्पल खरीदी भी गई किन्तु उन्हें  कभी  कमफर्टेबल वाली को छोड़ बाकी कोई सी ले ली क्योकि  वह कमफर्टेबल वाली मिली ही नहीं! 
अब तक जिस  दुकान  पर गयी थी  वहां दूसरी फेशनेबल वाली दिख गई नीली साड़ी के साथ मैच वाली तो कैसे छोड़ दें? 
कितना ढ़ूँढा था इसे और आज जाकर दिखी 
तो छोड़ने का तो सवाल ही नहीं उठता !
हर बार कोई ऐसी चप्पल उसे जरुर मिल जाती है जिसे उसने कितना ढूंढा था लेकिन अब जाकर मिली.
सब मिली लेकिन एक आरामदायक चप्पल की शाश्वत खोज जारी है. उसे न मिलना था और न मिली. सोचता हूँ अगर उसे कभी वो चप्पल मिल जाये तो एक दर्जन दिलवा दूँगा. जिन्दगी भर का झंझट हटे.
लड़कियों की   इसी आदत के चलते यदि मैं अपनी बहन और भाभी के साथ बाज़ार जाता हू तो वहां चप्पल की दुकान दिखते ही मेरी हृदय की गति बढ़ जाती है. कोशिश करता हूँ कि दोनों को किसी और बात में फांसे दुकान से आगे निकल जायें और उसे वो दिखाई न दे. लेकिन चप्पल की दुकान तो चप्पल की दुकान न है, हलवाई की दुकान हो गई कि तलते पकवान अपने आप आपको मंत्रमुग्ध सा खींच लेते हैं. कितना भी बात में लगाये रहो मगर चप्पल की दुकान मिस नहीं होती.
ऐसी ही किसी चप्पल दुकान यात्रा के दौरान, जब वो दोनों  कम्फर्टेबल चप्पल की तलाश में थीं, तो एकाएक उनकी नजर कांच जड़ित ऊँची एड़ी, एड़ी तो क्या कहें- डंडी कहना ही उचित होगा, पर पड़ गई.
अरे, यही तो मैं खोज रही थी. वो सफेद सूट के लिए इतने दिनों से खोज रही थी, आज जाकर मिली.
मैने अपनी भरसक समझ से उनको समझाने की कोशिश की कि यह चप्पल पहन कर तो चार कदम भी न चल पाओगी.
बस, कहना काफी था और ऐसी झटकार मिली कि मैं तब से चुप ही हूँ आज तक.
बहन और भाभी मुझे तत्काल बोली 
’ सोनू भैया आप तो कुछ समझते ही नहीं. यह चप्पल चलने वाली नहीं हैं. यह पार्टी में पहनने के लिए हैं उस सफेद सूट के साथ. एकदम मैचिंग.
तब मैंने पहली बार जाना कि चलने वाली चप्पल के अलावा भी पार्टी में पहनने वाली चप्पल अलग से आती है.

हमारे पास तो टोटल दो जोड़ी जूते हैं. एक पुराना वाला रोज पहनने का और एक थोड़ा नया, पार्टी में पहनने का. जब पुराना फट जायेगा तो ये थोड़ा नया वाला उसकी जगह ले लेगा और पार्टी के लिए फिर नया आयेगा. बस, इतनी सी जूतों दुनिया से परिचय है.
यही हालात उन दोनों के पर्सों के साथ है. सामान रखने वाला अलग और पार्टी वाले मैचिंग के अलग. उसमें सामान नहीं रखा जाता, बस हाथ में पकड़ा जाता है मैचिंग बैठा कर.
सामान वाले दो पर्स और पार्टी में जाने के लिए मैचिंग वाले बीस.
मैं आज तक नहीं समझ पाया कि इनको क्या पहले खरीदना चाहिये-पार्टी ड्रेस फिर मैचिंग चप्पल और फिर पर्स या चप्पल, फिर मैचिंग ड्रेस फिर पर्स या या...लेकिन आजतक एक चप्पल को दो ड्रेस के साथ मैच होते नहीं देखा और नही पर्स को.
गनीमत है कि फैशन अभी वो नहीं आया है जब पार्टी के लिए मैचिंग वाला हसबैण्ड अलग से हो.
तब तो हम घर में बरतन मांजते ही नजर आते.
घर वाला एक आरामदायक हसबैण्ड और पार्टी वाले मैचिंग के बीस.
गम भरे प्यालों में,
दिखती है उसी की बन्दगी,

मौत ऐसी मिल सके
जैसी कि उसकी जिन्दगी.

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