भोपाल गैस कांडः जांबाज मांग रहा न्याय

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अविनाश रावत
First Published 11:00[IST](13/06/2010)
Last Updated 12:19 PM [IST](13/06/2010)
इंदौर. उस भयावह मंजर को याद करते हुए रामसिंह बताते हैं शरीर को कंपा देने वाली उस सर्द रात को मैं अपने चार-पांच जवानों और ड्राइवर अर्जुन सिंह के साथ यूनियन कार्बाइड के पास ही बसे रासली गांव से रात्रिगश्त कर लौट रहा था। हमारी गाड़ी ने फैक्ट्री के पास रेलवे क्रॉसिंग पार किया ही था कि चीखते-तड़पते लोग दिखाई दिए।

मैं माजरा समझने के लिए गाड़ी से उतरा ही था कि कुछ महिलाओं ने अपने बच्चों को गाड़ी में डाल दिया और अस्पताल ले जाने की गुहार लगाई। जब तक मैं स्थिति को समझता मेरी भी आंखों और सीने में जलन होने लगी। फिर कुछ लोगों ने बताया कि यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से निकल रही गैस के कारण ऐसा हो रहा है। मैंने अपने आप को संभाला और दर्द से कराहते बच्चों और अन्य लोगों को सीधे अस्पताल ले गया।

इसी दौरान जैसे-तैसे तत्कालीन एस.पी. स्वराज पुरी को इस घटना की सूचना दी और मौके पर मदद भेजने को कहा। लोगों को अस्पताल छोड़ने के बाद मैं दोबारा उस जगह गया और वहां का नजारा देख मेरी आंखें फटी की फटी रह गई। सड़कों पर लाशों के ढेर लग चुके थे। घटनास्थल पर कुछ जानवर भी बंधे हुए थे, जो तड़प रहे थे। उन्हें खोलने को कोशिश भी की, लेकिन तब तक वे दम तोड़ चुके थे। सारी रात ड्राइवर अजरुन और मैं लोगों को अस्पताल पहुंचाने में लगे रहे। जहरीली गैस का प्रभाव इतना था कि लोगों का बच पाना मुश्किल था। अगली सुबह मैंने मृत लोगों का पंचनामा बनाना शुरू किया। गैस कांड के कारण मुझे चार-पांच दिन तक बिना रुके और बिना थके ड्यूटी करना पड़ी। न तो खाने का होश था और न ही नींद का। मैंने बिना किसी स्वार्थ के ईमानदारी से अपना फर्ज निभाया, लेकिन सरकार ने मेरी सेवा का कभी सम्मान नहीं किया।

सालों से लगा रहे गुहार

अपनी परवाह किए बगैर लोगों की जान बचाने वाले चाहत रामसिंह अब तक पुलिस महकमे के कई अफसरों से राष्ट्रपति पदक दिलाने की गुहार लगा चुके हैं, लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हुई।

लोगों की जानें बचाने के एवज में रामसिंह ने..तकलीफों को गले लगाया

तमाम दु:ख और तकलीफ सहने वाले 80 बरस के इस शेर को अपने महकमे के इस बेरुखे रवैये की उम्मीद नहीं थी। अपना हक पाने के लिए उन्होंने अफसरों से गुहार लगाई, लेकिन निराशा ही हाथ लगी। चाहत रामसिंह आज भी यही आस लगाए बैठे हैं कि एक न एक दिन उनकी सेवा का सम्मान जरूर मिलेगा।

सालों बाद इस त्रासदी का मामला सामने आने के बाद 1990 में डीएसपी के पद से रिटायर हुए चाहत रामसिंह के जख्म भी हरे हो गए। उन्होंने नि:स्वार्थ भाव से लोगों की जान बचाने का काम किया, जिसका खामियाजा बीमारियों के रूप में वे आज तक भुगत रहे हैं। इसके बावजूद उनका नाम राष्ट्रपति पदक के लिए नहीं भेजा गया। रामसिंह और ड्राइवर अजरुनसिंह दोनों ने अपनी जान दांव पर डालकर लोगों को बचाया, लेकिन उन्हें उनका हक नहीं मिल सका। रामसिंह बताते हैं कि उनके बजाय कुछ ऐसे लोगों के नाम राष्ट्रपति पदक के लिए भेज दिए गए, जो इस दिल दहला देने वाली घटना के समय अपना फर्ज छोड़कर खुद की जान बचाने के लिए गए थे। हालांकि ऐसे लोगों का नाम वे सिर्फ इसलिए सामने नहीं लाना चाहते क्योंकि उनमें से कई लोग अब इस दुनिया में नही रहे।

मूलत: जबलपुर के रहने वाले रामसिंह इंदौर में बस गए हैं। पिछले डेढ़ साल से वे मानसरोवर नगर में अपने परिवार के साथ रह रहे हैं। उनकी देशभक्ति का सबसे बड़ा उदाहरण यही देखने को मिलता है कि बेटे को भी उन्होंने पुलिस विभाग में भर्ती करवाया है। उनका बेटा सीआईडी में इंस्पेक्टर है। हालांकि रामसिंह खुद भी गैस की वजह से कई बीमारियों से पीड़ित हैं। गैस की चपेट में आने के कारण उन्हें आज भी सांस लेने में तकलीफ होती है इसलिए उन्हें अस्थलीन चौबीसों घंटे अपने साथ रखना पड़ती है। इसके अलावा उन्हें आंखों व सीने में जलन होने के साथ-साथ कम सुनाई देता है।

आंखों की तकलीफ के चलते तीन साल पहले उनका ऑपरेशन भी हो चुका है। सालभर पहले उनका पैर का ऑपरेशन कर स्टील की रॉड भी डाली गई। इतनी तकलीफ झेलने के बावजूद सरकार ने उन्हें उपेक्षित ही रखा। आज भी उनके मन में यही आस है कि इस काम के बदले राष्ट्रपति पदक मिले। पदक के लिए अपना और ड्राइवर अजरुन का नाम नहीं पहुंचने के बाद रामसिंह ने पुलिस महकमे के आला अफसरों को कई आवेदन दिए, जिसके बाद हुई जांच में भी निकला कि सम्मान के असली हकदार रामसिंह हैं। जांच करने वाले अफसरों ने उनके नाम की सिफारिश भी की, लेकिन मामला वहीं का वहीं दब गया।
http://www.bhaskar.com/article/NAT-bhopal-gas-tragedy-1055387.html

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