लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए मिलाते हैं चर्बी का घोल ईनंबरिंग में छिपा है रहस्य अविनाश रावत . बीते दिनों उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों से जब्त मैगी के सैंपलों की प्रयोगशाला में जांच पर पाया गया कि इस फास्ट फूड में भारी मात्रा में मोनोसोडियम ग्लूटामेट (एमएसजी) और लेड है। लेड की मात्रा 17 पार्ट्स प्रति मिलियन है, जबकि अनुमति महज 0.01 पीपीएम की ही है। मैगी की जांच करने पर उसमें मोनोसोडियम ग्लूटामेट केमिकल (एमएसजी) की मात्रा तय सीमा से ज्यादा पाई गई है। जांच नतीजों के बाद भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) को लिखित में मैगी का लाइसेंस रद्द करने के लिए कहा है। मैगी के सैंपल की जांच कोलकाता की रेफरल लैबोरेट्री से करवाई गई है और अब एफएसएसएआई देशभर इस बात की पुष्टि करने के लिए देशभर से मैगी के सैंपल मंगवाकर जांच कर रहा है। 2 मिनट में पकने वाली मैगी नूडल सभी वर्ग और उम्र के लोगों की फेवरेट होती है. लेकिन इस फास्ट फूड को लेकर चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। मैगी में इस जहरीले केमीकल के साथ ही लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए सुअर का मांस भी मिलाया जा रहा है। सालभर पहले करीब
अविनाश रावत. दुनिया भर में तीन सौ से ज्यादा रामायण प्रचलित हैं। इ नमें वाल्मीकि रामायण, कंबन रामायण और रामचरित मानस, अद्भुत रामायण, अध्यात्म रामायण और आनंद रामायण की चर्चा ज्यादा होती है। सभी रामायणों की कथाओं में थोड़ी-थोड़ी भिन्नता है। भगवान राम के बारे में कई लोकथाएं भी हैं। उत्तर भारत में रामचरित मानस में लिखी गई राम-कथा को ही ज्यादातर लोग जानते और मानते हैं। इसके मुताबिक भगवान राम के तीन भाई लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न थे, लेकिन राम की बहन के बारे में कम लोग ही जानते हैं। रामचरित मानस में राम की बहन का जिक्र कहीं भी नहीं किया गया है। हां, बाल्मीकि रामायण में एक बार दशरथ की पुत्री शांता का उल्लेख करते हुए लिखा गया है - 'अङ्ग राजेन सख्यम् च तस्य राज्ञो भविष्यति। कन्या च अस्य महाभागा शांता नाम भविष्यति।' दक्षिण भारत की रामायण और लोक-कथाओं के अनुसार राम की दो बहनें भी थी एक शांता और दूसरी कुकबी। हम यहां आपको शांता के बारे में बताएंगे। शांता चारों भाइयों से बड़ी थीं। वे राजा दशरथ और कौशल्या की पुत्री थीं। इस संबंध में तीन कथाएं हैं। पहली कथा के अनुसार वर्षिणी नि:
खिमलासा में पांच हजार साल से आस्था का केन्द्र हैं यह दो कल्पवृक्ष कल्पवृक्ष.. देवलोक का एक वृक्ष । इसे कल्पद्रुप, कल्पतरु, सुरतरु देवतरु तथा कल्पलता इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। पद्मपुराण के अनुसार परिजात ही कल्पवृक्ष है। पुराणों के अनुसार समुद्रमंथन से प्राप्त 14 रत्नों में एक कल्पवृक्ष भी था। यह इंद्र को दे दिया गया था और इंद्र ने इसकी स्थापना सुरकानन में कर दी थी। कल्पवृक्ष श्रीकृष्ण और सत्यभामा के प्रेम का प्रतीक है। कहते हैं कि सत्यभामा ने जब भगवान श्रीकृष्ण से इस कल्प वृक्ष को अपने पास लाने की इच्छा जताई तो कृष्ण ने देवराज इंद्र से यह कल्पवृक्ष मांगा तो इंद्र ने इसे देने के इंकार कर दिया तो कृष्ण इसे उखाड़कर लाये और खिमलासा में स्थापित कर दिया। कृष्ण और सत्यभामा से संबंधित कई शास्त्रों में कल्पवृक्ष के इस किस्से का जिक्र है लेकिन खिमलासा का उल्लेख कहीं नही है। कल्पवृक्ष के यहां स्थापित होने के पीछे एक अन्य तथ्य यह भी है कि इन दो कल्पवृक्षों से करीब 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गढ़ोली जवाहर गांव में पांड़वों के अज्ञातवास के दौरान बनाई गई एक मड़ भी है। यही नहीं करीब 30 किलो
Comments
Post a Comment