इस तरह शुरू हुई बनारस में बृहद गंगा आरती


दशाश्वमेघ घाट की गंगा आरती के प्रमुख पंडितों के साथ
पिछले दिनों एक खबर की पड़ताल के सिलसिले में बनारस जाना हु्आ। भगवान विश्वना के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। तमाम प्रसिद्ध मंदिरों के साथ ही दशाश्मेघ गाट की भव्य गंगा आरती में शामिल होने के साथ ही गंगा पूजन का अवसर भी मिला। दरअसल शिव नगरी काशी को आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक समृद्धि प्रदान करने वाली जीवनदायिनी-मोक्षदायिनी पतित पावनी माँ गंगा की आराधना काशीवासी अपने अनोखे अंदाज में करते हैं। यह आराधना पूरे विश्व में ‘गगा आरती’ के रूप में विख्यात है प्रतिदिन सूर्यास्त के पश्चात गोधुलि बेला में काशी के अधिकतर घाटों पर ‘गंगा आरती’ का आयोजन होता है, परन्तु दशाश्वमेघ घाट पर होने वाली गंगा आरती अद्भुत है। आरती के लिये घाट की सिढ़ियों पर विशेष तौर से चबूतरो का निर्माण कराया गया है। चबूतरों पर पाँच-सात-ग्याहर की संख्या में प्रशिक्षित पण्डों द्वारा घण्टा-घड़ियाल एवं शंखों के ध्वनि के साथ गंगा की आरती एक साथ सम्पन्न की जाती है। इन पण्डों की समयबद्धता इतनी सटीक होती है कि झाल आरती पात्र (हर पात्र में 108 दीप होते हैं), से आरती, पुष्प वर्षा एवं अन्य क्रिया एक समय में एक साथ होता है। बनारस के किसी भी घाट पर बृहद पैमान पर गंगा आरती का चलन नहीं था। दस पीढियों से बनारस में रहने वाले और दश्वामेघ घाट के मुख्य पंडित और गंगोत्री सेवा समिति के फाउंडर पंडित किशोरी रमण दुबे (बाबू महाराज) 8 नवंबर 1997 को हरिद्वार गये। वहां गंगा घाट आरती होते देखी और लौटकर 13 नवंबर से बनारस के दश्वामेघ घाट पर बृहद गंगा आरती शुरू कर दी। तीन साल तक एक ही आरती करने के बाद 2001 से 5 आरती शुरू की। 5 साल तक
बनारस के दशाश्वमेघ गाट पर भव्य गंगा आरती का दृश्य
अकेले डमरू और घण्टा से आरती करते रहे और धीरे-धीरे साधन जुटाए। अब यहां पर रोजाना शाम 45 मिनट की संगीतमय आरती होती है।  पांच पंडित एक जैसी वेशभूषा में  आरती करते हैं। पांचों के हाथ की मुद्रा 45 मिनट तक एक जैसी होती है। मंगलाचरण और पंचामृत स्नान पूजन के बाद शंख ध्वनि से मां गंगा की आरती प्रारंभ होती है। सबसे पहले 2 बत्ती वाली आरती, फिर गूगल (लोवान, चंदन, इंत्यादि), 58 दीपक से झार आरती, एक झार शिव तांडव (कपूर आरती), बस्त्र आरती और फिर मोरपंख आरती के बाद शंख से जल और ध्वनि समर्पित की जाती है। इसके बाद चवर (सफेद पंख) की आरती कर पुष्पांजलि समर्पित कर हर हर महादेव के उद्घोष से आरती समाप्त होती है। 18 साल पहले दशाश्वमेघ घाट से शुरू हुई गंगा आरती अब डॉ राजेन्द्र प्रसाद घाट, मणिकर्णका घाट, पंचगंगा घाट, गायघाट, राजघाट, केदार घाट, अस्सी घाट और पुराने घाट पर भी होती है लेकिन सबसे बड़ी और चर्चित आरती दशाश्वमेघ घाट पर ही होती है। मौसम चाहे कोई भी हो 18 सालों में खुले में होने वाली गंगा आरती कभी नही रुकी। दीपावली से 15 दिन बाद पडने वाली पूर्णिमा को देव-दीपावली कहा जाता है। इस दिन यहां 52 बटुक (लड़क-लड़की) विशेष आरती करते हैं जिसे देखने देश विदेश से लाखों की संख्या में लोग आते हैं। कहते हैं इस दिन देवताओं के शत्रु त्रिपुर राक्षस का वध हुआ था जिसकी खुशी में देवताओं ने इसी दिन काशी में लाखों दीपक जलाकर फूल बरसाये थे। जून माह में पड़ने वाले गंगा दशहरा और यहां गंगा अवतरण दिवस के रुप में मनाया जाता है। इस दिन भी 22 बटुक दशाश्वमेघ घाट पर विशेष आरती करते हैं।
देश-विदेश में फैली गंगा आरती
मॉरीशस के मध्य में सावने जिले के दूरस्थ पर्वतीय इलाके में एक झील है। यह समुद्र तल से 1,800 फुट उपर है। यह मॉरीशस के सर्वाधिक पवित्र स्थलों मे से एक माना जाता है, भगवान शिव का मंदिर झील के किनारे स्थित है। जिसे यहां के लोग गंगा तालाब कहते हैं। इस गंगा तालाब को 'ग्रांड बेसिन' भी कहा जाता है। शिवरात्रि पर मॉरीशस में बहुत से श्रद्धालु अपने घरों से नंगे पैरों से पैदल चलकर झील तक पहुंचते हैं।। गंगा तालाब को मॉरीशस के लोग उसी नजर से देखते हैं, जैसे की भारत मे गंगा की पवित्र महत्ता है अक्सर यहा के श्रधालु यहा के तट पर आ कर पूजा पाठ करते है। मॉरीशेश्वर महादेव के प्रति मॉरीशस के अप्रवासी भारतीयों में अपार श्रद्धा है। इसे 13वां ज्योतिर्लिंग मानते हैं। गंगा तालाब को दोनो देशो के प्रगाढ आध्यात्मिक संबंधो का प्रतीक माना जाता है। पिछले साल वाराणासी के दशाश्वमेध घाट पर गंगा आरती को देखकर मॉरीशस के राष्ट्रपति अनिरूद्ध जगन्नाथ ने मॉरीशस में गंगा तालाब पर राष्ट्रीय पर्व शिवरात्रि पर गंगा आरती कराने की इच्छा प्रकट की थी। अब बहुत जल्द वाराणसी से गंगा आरती करने वाले पंडितों का एक दल मॉरीशस जाएगा और वहां गंगा आरती कराने के साथ साथ वहां के लोगों को गंगा आरती का प्रशिक्षण भी देगा। गंगा आरती का सारा सामान भी यहां से भेजा जाएगा। नेपाल में पशुपतिनाथ मंदिर के पास बागमति नदी पर सायंकाल की महागंगा आरती 2008 में बनारस में गंगा आरती करने वाले पंडितों ने ही शुरू करायी थी जो अब भी निरंतर जारी है। कलकत्ता के बाबूघाट पर गोयंका परिवार ने गंगा आरती करने वाले पंडितों को बुलाकर गंगा आरती शुरू करवाई। इसी तरह पटना में भी गंगा आरती शुरू हुई। गंगा के घाटों पर होने वाली गंगा आरती अब देश के छोटे बड़े शहरों के साथ विदेशों तक में भी शुरू हो गयी है। धार्मिक आयोजन, मंदिर में मूर्ति प्राणप्रतिष्ठा, भागवतपुराण कथा आयोजन और नवरात्रि में लोग बनारस में गंगा आरती करने वाले पंडितों को बुलाकर गंगा आरती करवा रहे हैं।
गंगा आरती से ठीक पहले गंगा पूजन करने का सौभाग्य मिला।
45 मिनट तक एक जैसी होती है। मंगलाचरण और पंचामृत स्नान पूजन के बाद शंख ध्वनि से मां गंगा की आरती प्रारंभ होती है। सबसे पहले 2 बत्ती वाली आरती, फिर गूगल (लोवान, चंदन, इंत्यादि), 58 दीपक से झार आरती, एक झार शिव तांडव (कपूर आरती), बस्त्र आरती और फिर मोरपंख आरती के बाद शंख से जल और ध्वनि समर्पित की जाती है। इसके बाद चवर (सफेद पंख) की आरती कर पुष्पांजलि समर्पित कर हर हर महादेव के उद्घोष से आरती समाप्त होती है। 18 साल पहले दशाश्वमेघ घाट से शुरू हुई गंगा आरती अब डॉ राजेन्द्र प्रसाद घाट, मणिकर्णका घाट, पंचगंगा घाट, गायघाट, राजघाट, केदार घाट, अस्सी घाट और पुराने
गंगा आरती से पहले गंगा पूजन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
घाट पर भी होती है लेकिन सबसे बड़ी और चर्चित आरती दशाश्वमेघ घाट पर ही होती है। मौसम चाहे कोई भी हो 18 सालों में खुले में होने वाली गंगा आरती कभी नही रुकी। दीपावली से 15 दिन बाद पडने वाली पूर्णिमा को देव-दीपावली कहा जाता है। इस दिन यहां 52 बटुक (लड़क-लड़की) विशेष आरती करते हैं जिसे देखने देश विदेश से लाखों की संख्या में लोग आते हैं। कहते हैं इस दिन देवताओं के शत्रु त्रिपुर राक्षस का वध हुआ था जिसकी खुशी में देवताओं ने इसी दिन काशी में लाखों दीपक जलाकर फूल बरसाये थे। जून माह में पड़ने वाले गंगा दशहरा और यहां गंगा अवतरण दिवस के रुप में मनाया जाता है। इस दिन भी 22 बटुक दशाश्वमेघ घाट पर विशेष आरती करते हैं।

Comments

Popular posts from this blog

बिस्किट, चिप्स और चॉकलेट में एनीमल फेट

मर्यादा पुरूषोत्तम राम की वह विस्मृत बहन !

कल्पनाओं को मूर्त रूप देता है कल्पवृक्ष