दुनिया में बेजोड़ हैं इंदौर नमकीन
अविनाश रावत
पिछले दिनों मेरी मां हाई ब्लड प्रेशर का इलाज कराने के लिए इंदौर आयी। इलाज कराते-कराते शहर में उनका मन लग गया तो कुछ दिन और रुक गई। जाहिर सी बात है रिश्तेदारों को फ्रिक होगी और फार्मेलिटी के लिए देखने भी आंएगे और आए भी। हर किसी ने जाने से पहले इंदौर के प्रसिद्ध नमकीन का जिक्र जरूर किया। अब जिक्र किया है तो लाना तो मुझे ही पड़ेगा। मां दो महीने शहर में रुकी और मैंने इस दौरान 5 हजार रूपए से ज्यादा सिर्फ रिस्तेदारों को नमकीन खिलाने में खर्च दिए। फिर मन में आया कि अकेले मैंन इतना खर्च कर दिया तो यह कारोबार होगा कितना बढ़ा। दिमाग में सवाल आया है तो कीड़ा शांत करना ही पड़ेगा। आइए अब बात करते हैं शहर के नमकीन कारोबार की। इंदौरी नमकीन का कोई जबाव नहीं है। आपको शायद पता हो कि इंदौर नमकीन से पहले रतलाम के पास इस कारोबार में महारत हासिल थी। नमकीन और खासतौर पर सेव के मामले में रतलाम का ही डंका बजता था तभी तो इंदौर में जब यह कारोबार शुरू हुआ तो सेव का नाम रतलामी सेव ही रखा गया। अब रतलाम में सेव व नमकीन का ज्यादा कारोबार नहीं बचा है लेकिन इंदौर ने अब भी रतलामी सेव का नाम और स्वाद जिंदा रखा है। रतलाम के गेलड़ा परिवार ने इंदौर आकर यहां के लोगों को रतलामी सेव का स्वाद चखाया। 50 साल पहले इस परिवार के रतनलालजी इंदौर आए और खोमचे पर सेव बेचना शुरू किया उसके बाद धान गली में छोटे स्तर पर कारोबार शुरू किया। यह उसके स्वाद का ही कमाल था कि थोड़े ही समय में इसकी पहचान बन गई। आज पीपली बाजार में आप रतन सेव भंडार नाम से जो दुकान देख रहे हैं वह गेलड़ा परिवार की मेहनत है। जो 1977 में शुरू हुई थी। रतलामी सेव में स्वाद लौंग का रहता है वह रतन सेव की विशेषता है। प्रकाश और आकाश नमकीन ने इंदौरियों को नमकीन का दीवाना बनाया है। देश ही नहीं विदेशों में भी इंदौर नमकीन खासा पसंद किया जाता है।
राजगढ़ जिले के छोटे से गांव छापीहेड़ा में ठेले पर सेव पपड़ी बेचने वाले हीरालालजी गुप्ता अपने बेटे विट्ठलदास के साथ 1932 में इंदौर आए थे यहां उनका यह काम जारी रहा। यहां से उन्होंने मेलों में भी जाना शुरू कर दिया जिससे जल्द ही उन्होंने पैसे जोडक़र 1940 में मल्हारगंज में एक दुकान किराए से ले ली। परिवार की लगातार मेहनत ने नमकीन में उनका एक प्रतिष्ठित नाम बना दिया।
1957 में इंदौर में हुए कांग्रेस अधिवेशन ने प्रकाश नमकीन को ऐसा चमकया कि उसकी रोशनी अब तक कम नहीं हुई। विट्ठलदास ने तब सर्वथा पहली बार मिक्चर पेश किया जिसमें सेव के साथ पपड़ी, मूंगफली के दाने नमकीन नुक्ती मोंठ आदि डालकर एक अलग तरह का प्रयोग किया। इसे 50-50 ग्राम की बटर पेपर की थैलियों में पैक कर बेचा प्रयोग सफल रहा तो इससे प्रेरित होकर जब 1960 में जवाहर मार्ग पर दुकान शुरू की तो पॉली बैग में पैकर कर नमकीन बिक्री की जाने लगी। नमकीन को एक निश्चित मात्रा में पैक कर बेचना भी प्रकाश नमकीन ने दूसरों को भी सिखाया। 1973 में हीरालालजी के निधन के बाद उनके सात बेटों ने मिलकर इस कारोबार को संभाला। बिना मार्केटिंग नेटवर्क के देशभर में प्रसिद्धि किसी चमत्कार से कम नहीं। कुछ अरसे बाद भाईयों में बंटवारा हुआ तो तो आकाश नमकीन के रूप में कारोबार बढ़ गया। नमकीन कारोबार में अपना नमकीन ने भी काफी नाम कमाया। 2004 में कारोबार शुरू कर जल्द ही इस नाम ने अपनी पकड़ मजबूत की। प्रकाश राठौर ने करीब ड़ेढ सौ तरह का नमकीन बनाकर बेचना शुरू किया।
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